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मूल मार्ग ते आप्यो मुझ रंक बालने,
अनंत कृपा करी आप; प्रभु अतन्त० (२) . नाथ चरण बलिहारी, हरि भव भांति म्हारी,
अहो उपकार अमाप० ॐ परम० २.. प्रत्युपकार ते वालवा • ने हुं छु,
सर्वथाज असमर्थ ; छु सर्व० (२) निष्पृह छो कंइ लेवा, आप श्रीमद् महादेवा,
परितृप्त निज अर्थ० ॐ परम० ३ जेथी-मन वच तन एकाग्र थइ नमुं ___आप चरण अरविन्द ; नमुं आप० (२)
आत्मा अर्पु तुझने, परम भक्ति हो मुझने, . याचु न जड़ पद इन्द० ॐ परम० ४ अने वीतराग पुरुषो -ना मूल धर्मनी,
उपासना ज अखंड ; प्रभु उपा० (२) जागृत रहो उर म्हारे, भव पर्यत ए म्हारे,
छटो विषयानंद० ॐ परम० ५ आप कने हे नाथ ! एटलु हुं मांगु ते,
सफल थाओ अभिलाष; मुझ सफल० (२) हुँ सेवक तू स्वामी, पुष्ट निमित्त अनुगामी,
सहजानन्द विलास० ॐ परम० ६ - [श्रीमद् राजचंद्र पत्रांक ४१७ का पद्य रूप ]
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