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(६२) सद्गुरु-माहात्म्य-पद कव्वाली
अहो सत्पुरुषके वचनों ! अहो मुद्रा !! अहो सत्संग !!! जगावें सुप्त चेतनको, स्खलित वृत्तियाँ करें उत्तुंग ॥१॥ जो दर्शन मात्र से निर्दोष, अपूर्व स्वभाव प्रेरक हैं; स्वरूप- प्रतीति संयम अप्रमत्त-समाधि पुष्ट करें ॥२॥ चढ़ाकर क्षपक श्रेणी पै, घरावें ध्यान शुक्ल अनन्य; पूर्ण वीतराग निर्विकल्प, आप स्वभावदायक धन्य ! ॥ ३॥ अयोगी - भावसे प्रान्ते, स्व-अव्याबाध सिद्ध अनन्त - स्थिति - दाता ! गुरूराज !! वर्त्ती कालत्रय जयवंत !!! ४ || अहो गुरुराजकी करुणा ! अनंत संसार जड़ जारे ; जो सहजानंद पद देकर, अनादिय रंकता टारे ॥५॥
[श्रीमद राजचंद्र पत्रांङ्क ६३४१८७५ ]
(६३) मुमुक्षु कर्तव्य पद
हरिगीत छन्द
रजा - सर्वस्व सत्य प्रमाणिने,
बीजुं कशुं मा शोध केवल शोध तुं र त्पुरुषने, अर्पाइ जा तेना चरणमां सर्वथा शुद्धतर मने ; राजी रहे तेनी पछी मोक्ष जो तुझ ना मले तो मागजे मारी कने ॥ १ ॥ सत्पुरुष तेज के जेहनो आत्मोपयोग ज अटल छे, अनुभव प्रधान ज वचन जेनु शास्त्र - श्रुतिए पटल छे ;
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