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उपाध्याय श्री लब्धिमुनिजी
बीसवीं शताब्दी के महापुरुषों में खरतर गच्छ विभूषण श्री मोहनलालजी महाराज का स्थान सर्वोपरि है। वे बड़े प्रतापी, क्रियापात्र, त्यागी-तपश्वी और वचनसिद्ध योगी पुरुष थे। उनमें गच्छ कदाग्रह न होकर संयम साधन और समभावी-श्रमणत्त्व सुविशेष था। उनका शिष्य समुदाय भी खरतर और तपा दोनों गच्छों की शोभा बढाने वाला है। उ० श्री लब्धिमुनिजी महाराज ने आपके वचनामृत से संसार से विरक्त होकर संयम स्वीकार किया था ।
____ श्री लब्धिमुनिजी का जन्म कच्छ के मोटी खाखर गाँव में हुआ था। आपके पिता दनाभाई देढिया वीसा ओसवाल थे। सं० १६३५ में जन्म लेकर धार्मिक संस्कार युक्त मातापिता की छत्र छाया में बड़े हुए। आपका नाम लधाभाई था। आपसे छोटे भाई नानजी और रतनबाई नामक बहिन थी। सं० १६५८ में पिताजी के साथ बम्बई जाकर लधाभाई भायखला में सेठ रतनसी की दुकान में काम करने लगे। यहाँ से थोड़ी दूर सेठ भीमसी करमसी की दुकान थी, उनके ज्येष्ठ पुत्र देवजी भाई के साथ आपकी घनिष्टता हो गई क्योंकि वे भी धार्मिक संस्कार वाले व्यक्ति थे। सं० १६५८ में प्लेग की बीमारी फैली जिसमें सेठ रतनसी भाई चल बसे।
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