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________________ युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि-चरितम् वार्षिक पर्व हीनातो, तदुत्सूत्रंहि तन्मते ॥१०४॥ समवायादि सूत्रोक्त -चान्द्रपाठोऽभिवद्धिते । पुरो विधीयते मूढे स्तदुत्सूत्रं हि तन्मते ।।१०।। सूत्रादौ सा गृहि ज्ञाता, पर्युषणा प्रकीर्तिता। दिवस प्रतिबद्धाहि. न मास प्रतिवद्धिका ।।१०६।। तथापिमन्यते मास--प्रतिबद्धान्य पर्ववत् । सागरै दिन बद्धा न, जिन सिद्धान्त सम्मता ।।१०।। यदि सा मास बद्धास्या, त्तदा कालिकसूरयः। पंचमी तश्चतुझं तां, नानयिष्यत्कदाचन ॥१०८।। केपिनाखण्डयिष्यन्ता, कल्याणकादि पर्ववत् । सातोस्ति दिन बद्धात, स्तदुत्सत्रं हि तन्मते ॥१०॥ अभिवद्धित वर्षस्यु, श्चातुर्मासी प्रतिक्रमात् । विंशति रात्रयो याव, च्छावण शुक्लपंचमीम् ॥११०॥ जायन्ते तन्मते याव भाद्र धवल पंचमीम् । पञ्चाशदात्रयस्तस्मा, त्तदुत्सूत्रं हि तन्मते ॥११॥ जैन टिप्पन विच्छित्त्या, स्वीकृत्य लोक टिप्पनम् । तत्र पूर्वधरैः सर्व-मासवृद्धि प्रदर्शनात् ॥११२॥ चान्द्रोभिवद्धिते चातुर्मास्या पश्चाशता दिनः। वार्षिक कृत्य पूर्व सा, गृहिज्ञाता प्रतिष्ठिता ॥११३॥ द्वितीय श्रावणस्याद्य-भाद्रस्य शुक्ल पञ्चमीम् । यावद्भवन्ति पनाश-दिनानि तत्प्रतिक्रमात् ।।११४॥ २६] Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003816
Book TitleYugpradhan Jinchandrasuri Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherAbhaychand Seth
Publication Year1971
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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