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________________ चरित्र प्रकाशित किया तो चारित्र-चूडामणि विद्वत् शिरोमणी आशुकवि उपाध्याय श्री लब्धिमुनिजी महाराज ने अपने सहज इतिहास प्रेम और काव्य प्रतिभा से तुरन्त उसे काव्य का रूप देकर एक बहुत बड़े अभाव की पूर्ति कर दी। उन्होंने सं० १६७० में सर्वप्रथम खरतर गच्छ पट्टावली का १७४५ श्लोकों में निर्माण किया था फिर बाईस वर्ष के पश्चात् इस ऐतिहासिक काव्य की रचना कर के अपने हाथ से लिख कर साथ ही साथ हमें भेज दिया इस प्रकार ऐतिहासिक चरित्र निर्माण का सिल. सिला प्रारंभ किया और हमारे लिखित चारों दादासाहब के जीवनचरित्रों के चार काव्य व मोहनलालजी महाराज, जिनरत्नसूरिजी, जिनयशःसूरिजी, जिनऋद्धिसूरिजी के जीवन चरित्र-इस प्रकार आठ ऐतिहासिक काब्यों का निर्माण कर डाला। साथ साथ आपने और भी कई ग्रन्थ काव्यमय निर्माण किये थे परऐति-काव्य सभी अप्रकाशित हैं। चारों दादासाहब के जीवनचरित्र प्रकाशित हुए और उनके गुजराती अनुवाद भी गणिबर्य श्री बुद्धिमुनिजी महाराज ने सुसम्पादित रूप में प्रकाशित किये तो गुरुभक्त श्री अभयचंद जी सेठ व उनके लघु भ्राता लक्ष्मीचंद जी सेठ आनंद विभोर हो गये। उन्होंने जब चारों दादा साहब के संस्कृत चरित्र भी अप्रकाशित पड़े हैं, सुना तो उन्हें प्रकाशित करने की प्रबल इच्छा बतलाई और साथ साथ पूज्य उपाध्याय जी महाराज की खरतर गच्छ पट्टावली को भी छापने की भावना व्यक्त दस Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003816
Book TitleYugpradhan Jinchandrasuri Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherAbhaychand Seth
Publication Year1971
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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