________________
संपादकीय
इतिहास से प्रेरणा व मार्गदर्शन मिलता है। महापुरुषों के चरित्र पढ़ने से अपनी आत्मा में गुणों का प्रादुर्भाव होता है इसीलिये पूर्वजों-पूर्वाचार्यों की गुण गाथा गाने की प्रथा चिरकाल से चली आरही है। शोध के अभाव में प्रचुर इतिहास मामग्री ज्ञानभण्डारों में बंद पड़ी रही व बहुतसी नष्ट भी हो गई। गत चालीस वर्षों में हमने इस ओर ध्यान दिया तो संख्याबद्ध ऐतिहासिक भाषा व प्राकृतादि के काव्यरासादि उपलब्ध हुए। हमने जब समयसुन्दरजी के साहित्यशोध प्रमंग में उनके दादागुरु अकबर प्रतिबोधक श्रीजिनचन्द्रसूरिजी का जीवनचरित्र देखा तो कुल चार पांच पृष्ट की सामग्री ही लगी। श्रीहीरविजयसूरि जी सम्बन्धी प्रचुर रासकाव्य आदि एतिहासिक ग्रंथ प्रकाश में आ गये थे पर उन्हीं के समकालीन चौथे दादा साहब युगप्रधान जिनचन्द्रसूरिजी का इतिहास सर्वथा नगण्य उपलब्ध था। श्रीपूज्यजी श्रीजिन चरित्रसूरिजी ने एक विद्वान से काव्य निर्माण प्रारंभी करवाया था पर सामग्री संकलन के अभाव में वह यों ही रह गया। हमने पैंतीस वर्ष पूर्व जब प्रमाण पुरस्सर जीवन
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org