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मिट चुका है, अब रहे सहे अन्तर को मिटाने के लिये तुम प्रबल पुरुषार्थ करते रहो। मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि आखिर अपना यह पारस्परिक अन्तर सर्वथा मिट जायेगा। यद्यपि तुम्हारे प्रमाद तक के आंशिक विजय के उपलक्ष में अभी भी अप्रमत्त दशा के अनाहत बाजे तो बज ही रहे हैं, पर ज्यों-ज्यों सातिशय-अप्रमत्त बन कर तुम क्षपक. श्रेणि पर आरूढ़ होवोगे त्यों-त्यों ज्ञानातिशय, पूजातिशय, वचनातिशय और अपायापगमातिशय आदि के विलक्षण बाँध द्वारा जीव सरोवर की पालि अत्यन्त सुदृढ़ बन्ध जायगी। ज्यों-ज्यों बाँध-बंधता जायगा, त्यों-त्यों उसमें आत्मानन्द की सघन वृष्टि जन्य चैतन्य-रस की बाढ़ आयेगी, फलतः बाँध की पूर्णता में जीव-सरोवर आनन्द-रस से लबालब होकर लहराने लग जायगा। ऐसा होते ही सम्पूर्ण कैवल्य विजय की सुमंगल देव-दुदुभि भी बजने लग जायगी।
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