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५. श्री सुमति स्तवनम्
आत्म समर्पण रहस्य :
सत्पुरुष बाबा आनन्दघन साम्प्रदायिक प्रतिबन्धों से ऊँचे उठकर अवधूत आत्म- दशा में विचरण कर रहे हैं । कोई एक मुमुक्षु, आत्मज्ञानी की खोज में अनेक सम्प्रदायों की छानबीन करता हुआ एकाएक बाबा के सानिध्य में उपस्थित हुआ । बाबा की आत्म-दशा ने उसे प्रभावित और प्रसन्न कर दिया । अपने समाधान के लिए अवसर पाकर उसने प्रश्न प्रस्तुत किया कि - भगवन् ! आत्म कल्याण की कामना वश मैं सजीवनमूर्ति की खोज में वर्षों से भटक रहा हूँ, और आत्म-समर्पण के लिए अनेक धर्म सम्प्रदायों के धर्म-गुरूओं से मिला, पर अब तक मुझे कहीं से भी तृप्ति नहीं हुई । कृपया आप बताईये कि अब मैं क्या करूँ ? आत्म-समर्पण कहाँ और कैसे करूँ ?
१. बाबा आनन्दघन — भव्यात्मन् ! आत्म समर्पण तो वहीं होना चाहिए कि जिनकी मति सम्यक्, स्वरूपनिष्ठ और दर्पण की तरह स्वच्छ निरावरण हो, और जिनका आचरण जल - कमल की तरह निर्लेप हो । अर्थात् जो अनेक सन्मति मुमुक्षुओं के नाथ होने की योग्यता रखने वाले सुमति - नाथ हों ।
सर्व प्रथम अपनी मति को सम्यक् स्वच्छता द्वारा तर्पण - संतुष्ट करने के लिए बहुत से दार्शनिक विचारकों के सम्मत ज्ञातव्य को जान लेना आवश्यक है । तदनन्तर उस पर सद्-विचार द्वारा हेय, ज्ञेय और उपादेय का निर्णय करके उपादेय तत्व की उपलब्धि के लिये अपनी उपादान शक्ति को कारणता प्रदान करनी चाहिए जो कि निमित्त को कारणता दान करके उसे निमित्त कारण बनाने पर ही सम्भव है । निमित्त को आत्म समर्पण कर देना ही उसे निमित्त कारण बनाना है । निमित्त कारण को समर्पित आत्मा की उपादान-शक्ति का
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