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xxxxxiii वस्तुतः श्री आनंदघनजी महाराज आज महाविदेह में केवली रूप में विचरण करते हैं और जिन्होंने भी उनके साहित्य का परिशीलन करके लाभ उठाया है या उठाते हैं वे सभी महानुभाव धन्यवादाह हैं और सच्चे अर्थों में श्री आनंदघनजी महाराज उन्हीं के हैं। स्तुत्य हैं श्री विजयकलापूर्णसूरिजी महाराज जो श्रीमद् की जन्म व महाप्रयाण भूमि मेड़तानगर में उनका स्मारक-मन्दिर निर्माण करवाकर अनन्त कम निर्जरा व मुमुक्षु जन के परमोपकार का महत् कार्य कर रहे हैं।
गुरुदेव श्री सहजानंदघनजी के स्वयं हस्ताक्षरों से लिखित विवेचन की जेरोक्स कापी गुरुदेव के अनन्य भक्त मुमुक्षुवर्य श्री विजयकुमारसिंह बडेर हम्पी से करा के लाये, जिससे यह महत्वपूर्ण प्रकाशन संभव हो सका। अतः अनेकशः आभारी हूँ, आपने पूरी प्रस्तावना देखकर उचित परामर्श भी दिया है। मेरे ज्येष्ठ पुत्र श्री पारसकुमार नाहटा ने सम्पूर्ण प्रेसकापी कर दी अतः वह आशीर्वाद भाजन है। परमपूज्या आत्मद्रष्टा माताजी का आशीर्वाद हमारा चिर सम्बल है जिनसे प्रेरणा प्राप्त कर यह ग्रन्थ प्रकाशित हुआ है। आश्रम मंत्री व अहर्निश सेवारत मैनेजिंग ट्रस्टी गुरुदेव के अनन्य भक्त एस. पी० घेवरचंद जैन एवं प्रकाशन में सहयोगी महोपाध्याय श्री विनयसागरजी, निदेशक प्राकृत भारती, जयपुर तथा सचिव श्री देवेन्द्रराज मेहता का सौजन्य किसी भी प्रकार भुलाया नहीं जा सकता।
जिनके द्वारा यह विवेचन लिखा गया है उन महाविदेही प्रभु श्री सहजानंदघनजी महाराज का विस्तृत परिचय जानने को अनेक महानुभाव उत्सूक होंगे। वे आगामी प्रकाशन "सद्गुरु श्री सहजानंदघन चरियं" काव्य हिन्दी अनुवाद सह प्रकाश्यमान ग्रन्थ द्वारा जिज्ञासा पूर्ति की प्रतीक्षा करें। __ प्रस्तुत प्रकाशन, व प्रस्तावना में रही हुई अशुद्धियों व स्मृति दोषजन्य पुनरुक्तियों या स्खलनाओं के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।
सन्तचरण रज।
भँवरलाल नाहटा
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