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xxviii दिया है, अतः इनकी गुरुपरंपरा तथा विस्तृत परिचय यहाँ देना आवश्यक समझकर देता हूँ।
चिदानंद ग्रन्थावली में मैंने उनकी जीवनी-प्रस्तावना में जो उनका विस्तृत परिचय दिया है तदनुसार इस प्रकार है। उनकी रचनाओं का भी विवरण वहाँ देखना चाहिए।
अकबर प्रतिबोधक श्री जिनचन्द्रसूरि-श्री जिनसिंहसूरि के पट्टधर श्री जिन राजसूरि की शिष्य परंपरामें
आचार्य परंपरामें उपाध्याय रामविजय
जिनरंगसूरि उ० पद्महर्ष
जिनचन्द्रसूरि वा० सुखनंदन
जिनविमलसरि वा० कनकसागर
जिनललितसूरि उ० महिमतिलक
जिनअक्षयसूरि चित्रलब्धिकुमार
जिनचन्द्रसूरि उ० नवनिधि ( नढाजी)
जिननन्दीवर्द्धनसूरि भाग्यनंदि चारित्रनंदि (चुन्नीजी) जिनजयशेखरसूरि कपूरचन्द (कल्याणचारित्र) प्रेमचन्द (प्रेमचारित्र) जिनकल्याणसूरि प्रसिद्धयोगनाम चिदानंद प्रसिद्ध योगनाम ज्ञानानंद
यह परम्परा जिनरंगसूरि शाखा, लखनऊ की आज्ञानुयायो थी। गिरनार दादावाड़ी में चरणपादुकाएँ हैं तथा पहाड़ पर प्रेमचन्दजी की गुफा व सम्मेतशिखरजी में चिदानंदजी की गुफा है। पावापुरी में जिस कोठरी में चिदानंद कपूरचंद जी ने ध्यान किया था। पुजारी सोवन पांडे के बतलाने पर उसी स्थान में १० दिन ध्यान कर फकीरचंदजी ने चिदानंद ( द्वितीय ) नाम पाया था।
अब श्री आनंदघनजी महाराज की रचनाओं पर अद्यावधि जिन विद्वानों ने विवेचन प्रकाशन किया, यथाज्ञात यहाँ लिखा जाता है।
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