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मुनिसुव्रत स्तुति २०
भिन्न-भिन्न मत दर्शन एक एक नयवाद, निरपेक्ष दृष्टिए वध्यो धर्म-विखवाद ; टाले मुनिसुव्रत समन्वय स्याद्वाद,
सापेक्ष दृष्टि ए सहजानंद रस स्वाद ; ॥२०॥ नमिनाथजिन स्तुति २१
नमिनाथ प्रभु-पद सांख्य-योग बे ख्यात, वली बौद्ध वेदान्ती कर स्थाने करे बात ; निज प्रतीति पूर्व चार्वाक् हृदय-उत्पात,
शिर - जैन प्रतापे सहजानंद सुहात ॥२१॥ नेमिजिन स्तुति २२
रागी रीझे पण केम रीझे वीतराग ? एकांगी निष्प्रभ विनशे साधक-राग ; नेमनाथ आलंबी राजुल थाय विराग,
नमें सहजानंदघन ते दम्पती महाभाग ।।२२।। पार्वजिन स्तुति २३
षड् गुण-हानि वृद्धि प्रति द्रव्य मां थाय, तोय न्यूनाधिक ना अगुरुलघु गुण स्हाय ; छे नित्य द्रव्य पण ज्ञेय निष्ठा दुःखदाय,
प्रभु पार्श्व-निष्ठा तोय सहजानंद उपाय ; ॥२३॥ वीरजिन स्तुति २४
दर्शन ज्ञानादिक जे - जे गुण चिद्रूप, प्रति गुण-प्रवर्त्तना वीर्य स्हायक रूप ; तजी पर-परिणति सौ गुण शमाव्या स्वरूप, नमुं सहजानंद प्रभु महावीर जिनभूप ॥२४॥
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