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________________ कारण रूपी प्रभु भज्यो रे वा०, गिग्यो न काज अकाज । मनरा० । कृपा करी मुझदीजिये रे वा०, 'आनन्दघन' पद राज ॥ मनरा० ॥१७॥ श्री नेमि जिनस्तवन के शब्दार्थ भवान्तर=अन्य भव, पूर्व जन्म । वाल्ही=प्रिया-वल्लभा । सगपण=सगाई, संबंध। पखै=बिना। स्यो=कैसा। नेहलो स्नेह । ईसर=महादेव । अरधंग=आधे अंग में। झाले न= नहीं पकड़ता हैं। माणस नी=मनुष्य की। कलपतरु= कल्पवृक्ष । छेदियो=काट डाला। चतुराई रो=चातुर्य का । क्यू=कुछ भी। बैसतां=बैठते हुए । किसड़ी= कैसी। बघसी=बढेगी। निरवाहै निर्वाह करते, निभाते। निसपति=निसवत, सगाई, सम्बन्ध । पोख = पोषण । सामलो-सांवला, श्याम । दोख= दोष । लखणे लक्षण से। सेत= श्वेत, उज्ज्वल । दाखवो=बताना, कहना । माग=मार्ग। गुह्य=गुप्त। सगली=सब। अनेकान्तिक= अनेकान्त, स्याद्वाद बुद्धि । गतरोग रोग रहित । जोगी = दृष्टि। सीझे = सिद्ध होवे। माम=धर्म, प्रतिष्ठा। रूड़ो-श्रेष्ठ । १५२ ] Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003815
Book TitleAnandghan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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