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________________ बताते हैं। यदि रोगी को मल-दोष के कारण कब्जी हो तो विरेचन द्वारा मल शुद्धि करा कर शक्ति-वर्धक औषध देते हैं। सद्गुरु वैद्य की शरण गये बिना ही यदि कोई रोगी अपनी अशान्ति और अशान्ति के कारणों को केवल पुस्तकों के आधार पर किंवा कुवैद्यों के द्वारा मिटाना चाहे तो वह असफल ही रहेगा, फिर भी यदि वह दुःसाहस करेगा तो उल्टे उसका रोग असाध्य बन जायगा। इसलिये मान मोड़ कर सद्गुरु के शरण में जाने में ही उसकी भलाई है। __आश्रितों की आत्मा-अशान्ति मिटाने में निम्न लक्षणों वाले सद्गुरु का शरण ही कार्यकारी है अतः तदनुसार परीक्षा करके ही उनका शरण स्वीकार करना चाहिए। जो गुरु द्रव्य-भाव निग्रन्थ, स्व-परसमयविद्, समर्थ-श्रुत-ज्ञानी और आत्मद्रष्टा हों अर्थात् गुरु आम्नाय द्वारा समस्त द्वादशांगी के साररूप श्रद्धा का सम्यक् प्रयोग हाथ लग जाने से जिनकी अन्तदृष्टि इतनी स्वच्छ हो चुकी हो कि जिस दृष्टि में आत्मा और शरीर आदि समस्त दृश्य-प्रपंच प्रत्यक्ष भिन्न-भिन्न सतत् दिखाई देता हो, फलतः जो शुभाशुभ-कल्पना-जाल को मिटाने वाली सभी क्रियाओं के सार-स्वरूप संवर क्रिया में सिद्धहस्त हों, इस अप्रमत्त-कला से जो प्रधानतः अपनी पवित्र आत्मानुभूति-धारा को धारण किये हुये योग-प्रवृत्ति से निवृत्त एवं गौणतः आत्म-लक्ष-धारा में योग-प्रवृत्ति से प्रवर्तित रहते हों-ऐसे सद्गुरु की आम्नाय भी बाड़ेबन्धो और प्रतिसेवा की चाह से मुक्त अवञ्चक होती है, अतएव ऐसे गुरु की शरण से, उनकी बताई हुई विधि-निषेधात्मक साधन-क्रिया से और उससे आने वाले क्रिया फल से साधक को आत्म-वञ्चना कदापि नहीं हो सकती। ____ गुरु यदि अभव्य वत् यावत् नव पूर्व तक के पोथी-पण्डित तो हों, पर सम्यक् द्रष्टा न हो तो उनसे त्रिविध आत्म-वञ्चना अवश्यंभावी है ; एवं गुरु यदि सम्यग्द्रष्टा हों पर समर्थ-श्रुत-ज्ञानी न हों तो उनसे .११८] Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003815
Book TitleAnandghan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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