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श्री धर्म जिन स्तवन
( राग गौडी सारंग रसियानी देशी ) धरम जिनेसर गाऊँ रंग सू, भंग म पडज्यो हो प्रीत । बोजो मन मन्दिर आणू नहीं, ए अम्ह कुलवट रीत ॥ धरम० ॥१॥
धरम धरम करतो जग सहु फिरे, धरम न जाणे हो मर्म । धरम जिनेसर चरण ग्रह्याँ पछी, कोइ न बंधै हो कमं ॥ धरम० ॥२॥
प्रवचन अंजन जो सद्गुरु कर, देखे परम निधान । हृदय नयन निहालै जग धणी, महिमा मेरु समान ।। धरम० ॥३॥ दोडत दोडत दोडत दौडियो, जेती मननी हो दौड। प्रेम प्रतीति विचारो ढूकडी, गुरुगम लीजो हो जोड ॥ धरम० ॥४॥ एक पखी किम प्रीत बरै पड़े, उभय मिल्या होय संधि । हूँ रागी हूँ मोहे फंदियो, तू नोरागी निरबंधि ॥ धरम० ॥५॥ परम निधान प्रगट मुख आगलै, जगत उलंघी हो जाय। ज्योति बिना जोवो जगदीसनी, आंधो अंध पुलाय ॥ धरम० ॥६॥ निरमल गुणमणि रोहण भूधरा, मुनिजन मानस हंस। धन ते नगरी धन बेला घड़ी, मात पिता कुलवंस ॥ धरम० ॥७॥ मन मधुकर वर कर जोडी कहै, पद-कज निकट निवास। घन नामी आनन्दघन' सांभलो, ए सेवक अरदास ॥ धरम० ॥८॥
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