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सद्गुरु हैं। वे जो भी मार्ग-दर्शन कराते हैं-सब सही है, काल्पनिक नहीं क्योंकि उन्हें मार्ग का साक्षात् अनुभव है। अनुभवियों का कथन अन्य-नय-साक्षेप, सर्वागीण अनेकान्तिक होता है। जहाँ दूसरे नयों का अपलाप नहीं है वहाँ मताग्रह, झगडालु-वृत्ति और राग-द्वेष-अज्ञानरूप त्रिदोष सन्निपात नहीं हैं। जहाँ सन्निपात रहित स्वस्थ समरस दशा है वहाँ सद्विचार और सदाचार दोनों व्यापार बिल्कुल ठीक होते हैं अतः उक्त व्यापार को ज्ञानियों ने सम्यक्-व्यवहार कहा है, और इसी का फल मोक्ष है।
निरपेक्षवाद प्रधान मिथ्या-व्यवहार-जनित त्रिदोष-सन्निपात का फल तो तत्काल भाव मृत्यु और परम्परा से पुनर्जन्म-सन्तति-रूप संसार ही है, अतः यदि आत्म कल्याण चाहते हो तो सन्निपातियों का बकवास मत सुनो। यदि सुनने में आ गया हो तो उसे सही मत मानो और न तदनुरूप आचरण बनाओ। येन-केन प्रकारेण यदि उनकी बातों में आकर आचरण-चक्र में फंस गये हो तो उससे उदासीन हो जाओ, क्योंकि जो केवल नीरस और निःसार है उसमें अनुरक्त क्यों होना ?
५. यदि नीरस और निस्सार असद्गुरु एवं उनके बताये हुये अन्ध-मार्ग में ही अनुरक्त रहोगे, तो भला ! अठारह दोषों से परि. मुक्त देह-देवल-स्थित केवल चैतन्यमूर्ति-रूप शुद्धदेवतत्व, अखण्ड आत्म. लक्ष्य वाले द्रव्य-भाव निग्रन्थ-रूप शुद्धगुरुतत्त्व और मोह-क्षोभ रहित आत्म-परिणाम-रूप शुद्ध धर्मतत्त्व की वास्तविक पहचान किस तरह कर सकोगे ? क्योंकि असद्गुरु को इन तीनों हो तत्त्वों का साक्षात्कार तो है नहीं। और तत्त्व-त्रयी की वास्तविक पहचान के बिना पारमार्थिक शुद्ध स्वतत्त्व को अनुभव-गोचर करने वाले सम्यक्-श्रद्धा-प्रयोग को प्राप्त करने का अवसर भी किस तरह हाथ लगेगा ?
भूतकाल में इस जीव ने बहुत-से जन्मों में देव और धर्म की आराधना की एवं अब तक करता चला आ रहा है, पर सद्गुरु के
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