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गच्छ की समाचारी जिनागम सम्मत है । और किस क्रिया विधान से मोक्ष - फल की प्राप्ति हो सकती है ? - भगवन् ! इस सारे कथन के पीछे छिपे हुये तथ्य पर कृपया प्रकाश डालिये !
सन्त आनन्दघनजी -- शुद्धोपयोग की आत्माकार अखण्ड रमणतारूप चारित्र आराधना के बिना मोक्ष नहीं होता और ज्ञप्ति - क्रिया के बिना चारित्र - आराधना नहीं होती । ध्यान द्वारा ध्येय रूप केवल स्व-तत्व के ही स्पर्श को प्राप्त करानेवाली शुद्ध क्रिया ही 'ज्ञप्ति क्रिया' कहलाती है, कि जो शुभाशुभ भावों के संवर पूर्वक होती है। पट् आवश्यक आदि वचनोच्चारण-रूप जो विविध-शुभ क्रियायें हैं वे सभी स्वाध्याय के ही प्रकार हैं, कि जो स्वाध्याय अप्रमत्त से प्रमत्त होते समय आत्म- लक्ष को अखण्ड रखाने में साधक के लिये एक प्रबल सहारा है । स्वाध्याय के निमित्त से ध्यान की उपादान कारणता विकसित होती है । तदनुसार जहाँ ध्यान ध्येयाकार जमा कि स्वाध्यायात्मक सभी शुभ तरंग स्वतः समा जाते हैं और ज्ञप्ति - क्रिया सधती है — इस तरह स्वाध्याय और ध्यान को परस्पर कार्य कारणता है, अतः कारण में कार्योपचार करके स्वाध्याय रूप षट् आवश्यक आदि शुभ क्रियाएं भी परम्परा से मोक्ष हेतु के रूप में जिन वाणी में उपादेय बतायी गई है, पर वे साक्षात् मोक्ष - हेतु नहीं है, साक्षात् मोक्ष हेतु तो केवल ज्ञप्ति - क्रिया मूलक आत्मध्यान हो है । अतः जब तक आत्मध्यान की योग्यता न हो तब तक लक्ष्य पूर्वक मंत्र-स्मरण, दर्शनपूजन, सामायिक प्रतिक्रमण आदि के रूप में स्वाध्याय का सहारा लेना मुमुक्षु के लिये अनिवार्य है ।
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देश काल और परिस्थिति वश स्वाध्याय मूलक शुभ- क्रियाओं में चाहे ऊपरी फरक भले ही हो पर यदि भीतरी आत्म-लक्ष में फरक न हो तो वे सभी क्रियायें सम्यक् हैं; और यदि आत्म- लक्ष्य ही न हो तब तो वे हो सभी की सभी क्रियायें मिथ्या हैं, क्योंकि आत्मलक्ष्य के पूरक
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