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________________ ११. श्री श्रेयांस-जिन स्तवनम् आध्यात्म-रहस्य : एकदा अध्यात्मतत्त्व निष्ठ सन्त आनन्दघनजी के सत्संग में बहुत से अध्यात्मतत्त्व-प्रचारक आये, और बाबा से आध्यात्मिकचर्चा द्वारा अपने प्रश्नों को हल करने लगे। प्रचारक-भगवन् ! विश्व में बहुत से धर्म-मत प्रवर्तक हुये और होते चले जा रहे हैं, उनमें से अध्यात्म-तत्त्व का परिपूर्ण-रूप में साक्षात्कार करके उसे विशेष व्यक्त करने वाले सर्वश्रेष्ठ प्रवर्तक कौन गिने जा सकते हैं ? १. सन्त आनन्दघनजी-वत्स ! आध्यात्म-मत-प्रवर्तकों में सर्व श्रेष्ठ तो वे ही गिने जा सकते हैं कि जिन्होंने राग, द्वेष और अज्ञान का सर्वथा जय और क्षय कर दिया हो, अतएव जो सम्पूर्ण कैवल्यलक्ष्मी पाकर घट-घट की हल-चल प्रत्यक्ष जानते हुये भी आत्मस्वरूप में अखण्ड रमणता करने वाले साक्षात् श्रेयोमूर्ति हो । मेरी दृष्टि में तो वैसे अव्वल नम्बर के नामांकित व्यक्ति श्री जिनेश्वर भगवान ही हैं। वे साक्षात् श्रेयांसनाथ हैं, क्योंकि उनके उपलब्ध सिद्धान्त और शिक्षाबोध में आध्यात्मिकता की इतनी पराकाष्ठा है कि जो उन्हें परिपूर्ण अन्तर्यामी और आत्मारामी के रुप में मानने के लिये हमें बाध्य कर देती है। वास्तव में उन्हीं ने अध्यात्म-मार्ग को परिपूर्ण रूप से पाया और उसे उसी-रूप में व्यक्त करके वे सहज ही में जन्ममरण आदि दुखों से सर्वथा मुक्त हो कर सिद्धलोक में चले गये। २. प्रचारक-वर्तमान में इस अध्यात्म-पथ के पथिक सन्तों में से सर्वश्रेष्ठ सन्त कौन गिने जा सकते हैं ? सन्त आनन्दधनजी–सर्वश्रेष्ठ सन्त तो वे ही गिने जा सकते हैं कि जिनका उपयोग आत्म-दर्शन, आत्मज्ञान और आत्मसमाधि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003815
Book TitleAnandghan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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