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निश्चय नये करी नयवादी अनेकरूपी छै ए वर्ण लिख्या छ ए वर्णो नो रहस्यार्थ लिखवा वाले ने भास्यौ हुस्ये बीजं ए लिखत असंबद्ध प्रलाप भासै छै ।" ( श्रेयांस जिन स्त० बाला० ) ___अर्थकर्ता ज्ञानविमलसूरै ए गाथा नो अर्थ करतां, हूं छू तो महामूर्खशेखर परं आई तो मामूर थोडूज विचायु जणाय छै यथा... स्यु सम्भव परं रागांगी नु वाय सरयूँ ही मलार" ( विमलजिन स्तवन बाला.)
ए स्तवन नौ अर्थ करतां अथकर्तायें मूलथीज न विचायुधार तरवार नी तो सोहिली परं १४ जिन नी चरणकमल सेवामां विविध किरिया स्यू सेवै, फिरी चरण सेवा मां गच्छ ना भेद तत्वंनी बात उदर भरण निजकाज करवानों स्यो सम्बन्ध ? फिरी चरण सेवा मां निरपेक्ष सापेक्ष वचन, झूठा साचा नो स्यो संबंध ? फिरी देवगुरु धर्म नो शुद्ध श्रद्धा नी शुद्धता, उत्सूत्र सूत्र भासवा नो पाप पुण्य नो सम्बन्ध स्यौ ? परं चरण सेवा-चारित्र सेवा ए अर्थ न पाम्यु चरण सेवा पद सेवा भास्युं तेहथी एज अर्थ ने सिधश्री थी मिती पर्यन्त अन्धोधुन्ध परै धकावता ज चाल्या गया ।" (अनंतजिन स्त० बाला० ) ___अर्थकर्तायें अर्थ करतां "देखे परम निधान" आई निधान शब्दै धर्म निधान एहवो लिख्यो नै आई "निधान" शब्दै स्वरूप प्राप्तिरूप निधान ए अर्थ छै। धर्म प्राप्तिरूप अर्थ नथी संभवतुं एहनौ पिण अर्थ वलित छै परं लिखवानो स्थानक नथी ( धर्म जिनस्त० बाला० )
ए स्तवन मां अर्थकारके 'कहो मन किम परखाय' ए पद नो अर्थ करते मन प्रसन्नवंत थई ने कहौ एहवु परमेश्वर थी कहयुं ने ए वचन विरुद्ध छ। परमेश्वर ने मन नु मनन न संभवै" ( शान्ति जिन स्त० बाला०)
ए स्तवन मां अर्थकर्तायें "नांखै अलवै पासे" ए पदनु अर्थ इम लिख्यु जे चितवे कांई अलवै वांकू करै ते ए पद नूं तो अक्षरार्थ, अलवै
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