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________________ हंत तौ समर्थ अर्थ करी सकता। तेउए तो अर्थ करत विचारणा अत्यन्त न्यूनज करी, नै मैं ज्ञानसारे मारी बुद्धि अनुसारै संवत् १८२९ थी विचारते विचारतै सं० १८६६ श्रीकृष्णगढ़ मध्ये टबौ लिख्यौ पर मैं इतरा वरसां विचार विचारता ही सी सिद्धि थई एहवौ मोटौ पंडित विचार विचार लिखतौ तौ सम्पूर्ण अर्थ थातौ परं ज्ञानविमलसूरिजीये तौ असमझ व्यापारी ज्यु सौदी बेच्यो करे नफो तोटो न समझै तिम ज्ञानविमलसूरिजीय पिण लिखतां लेखण न अटकावणी एज पंडिताई नो लक्षण निर्धार कीनौ, व्यर्थ अर्थ समर्थित नी गिणत न गिणी।" (सुविधिजिन स्त० बाला०) सूत्रकायें शीतल जिन नी स्तवना मां “शक्ति व्यक्ति त्रिभुवन प्रभुता निग्रन्थता संयोगे रे' ए गाथा मां पांच द्विकसंयोगी त्रिभंगी बतावी छै नै अर्थकर्ता ज्ञानविमलसूरै एहवं लिख्यु शक्ति पामी ने करुणा तीक्ष्णता कर्म हणवान विस व्यक्तज छै त्रिभुवन प्रभुता पामी ने उदासीनता ए त्रण गुण निग्रन्थता नै संयोगे अथवा शक्ति व्यक्ति ! त्रिभुवन प्रभुता अने निग्रन्थता ३ ए त्रिभंगी तुम मांहि सामठी छै ए लिखत ति हां थी ज लिख्यौ छै। आंई उपयोग प्रयुञ्जना थोड़ी प्रयुंजी, फिरी' इत्यादिक बहु भंग त्रिभंगी" तिहां बहुभंगत्रिभंगी ने स्थाने ए त्रिभंगी लिखता ही थोडं विचायु का उत्पत्ति १ नास २ परमेश्वर मां नथो संभवता सत् १ असत् २ सद् सत् ३ ए त्रिभंगी नो संभव न छै। (शीतल जिन स्त० बाला०) अर्थ करत ज्ञानविमलसूरे "श्री श्रेयांस जिन अंतरजामी एहनु अर्थ लिख्यु यथा-श्री श्रेयांस जिन अंतरजामी मारा मन मां वस्या छो, ते मारी विचारणाये इम न जोइये किम एतौ सुमति सहित आनंदघन नौ वचन परमेश्वर थी छै यथा" अर्थ करताये अर्थ करते थकै अहिं प्रमाद वश ना भ्रान्ति वशै लिख्यो जणाय छ । एम अनेकरूप नयवादे एहनू अर्थ इम लिख्यु छ शुद्ध Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003815
Book TitleAnandghan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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