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________________ जिन चरणों में नमस्कार करके अपनी आत्मा को पूज्यता प्रदान करने वाली जिनेश्वरों की पूजा-अर्चा का उद्यम करना चाहिए। २/६. शौच आदि बाधाओं से निवृत होकर अचित्त निर्मल जल से स्नान करके अखण्ड शुद्ध धोती और एकवड़ा उत्तरीय वस्त्र (१) परिधान पूर्वक द्रव्य शुद्धि एवं आत्त-रौद्र परिणति का परित्याग तथा धर्म-ध्यान परिणति के परिग्रहण पूर्वक भावशुद्धि से अचित (२) शुद्ध सात्विक पूजन सामग्री लेकर अत्यन्त हर्षित आत्मभाव से जिनमन्दिर जाना चाहिए। राजा, आमात्य और नगर श्रेष्ठि प्रमुख सत्ता और वैभव सम्पन्न व्यक्तियों को धार्मिक प्रभावना के हेतु महोत्सव पूर्वक तथा सामान्य जनता को अपने उचित ढंग से जिनालय जाते हुए जिनमन्दिर को देखते ही वाहन से उतर कर एकाग्रचित्त (३) से अद्ध विनत प्रणाम (४) करके सकल गृह-व्यवहार के परित्याग सूचक 'निसीही' शब्दोच्चारण पूर्वक जिनालय के सीमाद्वार में प्रवेश करना चाहिए । तदनन्तर छत्र, चामर, मुकुट, खड़ग, पादुका आदि राजचिन्ह और स्व-शरीरपभोग्य पुष्पमाला आदि सचित्त-वस्तुओं (५) का परित्याग करना चाहिए। इस तरह पाँच प्रकार से वीतराग दशा का अभिगम-आदर करना मुमुक्षु के लिए नितांत आवश्यक है। जिनालय के परिक्रमा-विभाग में पहुँचने पर जिन-बिम्ब के चारों ओर तीन-तीन आवत्तं युक्त अविनत-नमस्कार करते हुए त्रिधा प्रणाम प्रर्वक रत्नत्रय-प्रवृत्ति की उपादेयता सूचक प्रदक्षिणा-त्रिक (१) दक्षिणावर्त से करके मन्दिर-व्यवस्था और स्वधर्मी-शिष्टाचार के भी त्याग सूचक पुनः 'निसीहि' शब्दोच्चारण करते हुये जिनालयप्रवेश करना चाहिये। और प्रभु सन्मुख मांगलिक स्तुति-स्तोत्र पढ़ कर पदभूमि के विधा प्रमार्जन (२) पूर्वक त्रिधा पञ्चांगी प्रणिपात (३) करना चाहिये। तदनन्तर पञ्चोपचार अष्टोपचार किंवा सर्वोपचार से द्रव्य-पूजन करना चाहिये। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003815
Book TitleAnandghan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj, Bhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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