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खरतर-गच्छ दीक्षा नन्दी सूची सं० १३८८ मिगसर सुदि १० को विद्वशिरोमणि श्री तरुणकीर्ति गणि को आचार्य पद से अलंकृत किया एवं श्री लब्धिनिधान गणि को उपाध्याय पद दिया । जयप्रिय और पुण्यप्रिय नामक दो क्षुल्लक व जयश्री, धर्मश्री दो क्षुल्लिकाओं को दीक्षा दी।
सं० १३८६ मिती फाल्गुन वदि ५ को तीसरे प्रहर संघ को एकत्र कर अपने पद पर पद्ममूति नामक पन्द्रह वर्षीय शिष्य को अभिषिक्त करने के लिए तरुणप्रभाचार्य और महोपाध्याय लब्धिनिधान को आदेश देकर स्वर्ग सिधारे। निजपद्मसूरि
ये सेठ लक्ष्मीधर के पुत्र, अंबदेव सेठ की पुत्री कीकी के नंदन सं० १३८३ में माघ सुदि ५ को देरावर में दीक्षित हुए, पद्ममूत्ति दीक्षा नाम था। सं० १३६० ज्येष्ठ सुदि ६ को मिथुन लग्न में पट्टाभिषिक्त हुए थे। उस समय तरुणप्रभाचार्य, जयधर्म महोपाध्याय एवं लब्धिनिधान महोपाध्याय आदि ३६ मुनि व अनेक साध्वियों की उपस्थिति थी। श्री जिन 'पद्मसूरि नाम रखा गया।
___ सं० १३६० ज्येष्ठ सुदि १० सोमवार के दिन जिनपद्मसूरि ने १ जयचंद्र, २ शुभचंद्र, ३ हर्षचंद्र मुनि और महाश्री, कनकधी दो क्षुल्लिकाओं को दीक्षा दी। पं० अमृतचंद्र को वाचनाचार्य पद दिया।
सं० १३६१ जेसलमेर में लक्ष्मीमाला गणिनी को प्रतिनी पद दिया।
सं० १३६२ माघ सुदि ६ को साचोर में मुनि नयसागर और अभयसागर को दीक्षित किया और मार्गशीर्ष बदि ६ को पाटण में दोनों क्षुल्लकों को बड़ी दीक्षा दी।
युगप्रधानाचार्य गुर्वावली में सं० १३९३ तक का ही वर्णन संप्राप्त है। सं० १४०० मिती वैशाख सुदि १४ की श्री जिन पद्मसूरि जी स्वर्गवासी
जिनलब्धिसूरि
ये जेसलमेर के थे। सं० १३६० मिती मार्गशीर्ष शुक्ल १२ को अपने
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