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खरतरगच्छ दीक्षा नन्दी सूची
सं० १२३४ में फलवद्धिका में प्रतिष्ठा कर श्रीजिनमत गणि को उपाध्याय पद दिया। सूरिजी उन्हें प्राचार्य पद देते थे पर उन्होंने अस्वीकार. कर दिया। गुणश्री साध्वी को महत्तरा पद दिया। वहीं पर सर्वदेवाचार्य और जयदेवी साध्वी की दीक्षा सम्पन्न हुई। वहां से अजमेर जाकर सं० १२३५ का चातुर्मास किया और जिनदत्तसूरि स्तूपोद्धार करवाया। देवप्रभ तथा उसकी मां चरणमति को दीक्षा दी।
सं० १२४१ में फलौदी आकर जिणनाग, अजित, पद्मदेव, गणदेव, यमचन्द्र, धर्मश्री व धर्मदेवी साधु-साध्वियों को दीक्षित किया।
सं० १२४४ में संघयात्रा व प्रद्युम्नाचार्य से शास्त्रार्थ के पश्चात् अर्णाहलपुर पाटण में पधारे और गच्छ के आचार्यों को वस्त्र देकर सम्मानित किया।
__ लवणखेड़ा में पूर्णदेव गणि, मानचन्द्र गणि, गुणभद्र गणि को वाचनाचार्य पद दिया। पुष्करिणी नगरी (पोकरण) में सं० १२४५ फाल्गुन मास में धर्मदेव, कुलचन्द्र, सहदेव, सोमप्रभ, सूरप्रभ, कीर्तिचन्द्र, सिद्धसेन, रामदेव और चन्द्रप्रभ आदि मुनियों तथा संयमश्री, शान्तमति, रत्नमति आदि साध्वियों को दीक्षा दी।
सं० १२४७-४८ में लवणखेड़ा में रहकर मुनि जिनहित को उपाध्याय पद दिया । सं० १२४६ में पुष्करिणी आकर मलयचन्द्र को दीक्षा दी। सं० १२५० में विक्रमपुर पाकर पद्मप्रभ को प्राचार्य पद दिया और उन्हें सर्वदेवसूरि नाम से प्रसिद्ध किया। सं० १२५१ में कुहियप गांव में जिनपाल गणि को वाचनाचार्य पद दिया ।
सं० १२५२ में विनयानन्द गणि को दीक्षित किया। सं० १२५३ में सुप्रसिद्ध विद्वान् भण्डारी, नेमिचन्द्र को प्रतिबोध दिया।
सं० १२५४ में श्री धारा नगरी में साध्वी रत्नश्री को दीक्षा दी।
सं० १२५६ चैत्र बदि ५ को नेमिचन्द्र, देवचन्द्र, धर्मकीत्ति और देवेन्द्र को लवणखेटक में दीक्षा दी।
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