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खरतरगच्छ दीक्षा नन्दी सूची
होगा। पर यहां तक साधु-साध्वियों के दीक्षा-संवतादिका इतिहास सोमचन्द्र (जिनदत्तसूरि) के अतिरिक्त अप्राप्त है। श्री अभयदेवसूरि जो के प्रिय तेजस्वी शिष्य जिनवल्ल भसूरि का भी दीक्षा समय अज्ञात है।
जिनदत्तसूरि :
इन्होंने बागड़ देश में अनेक साधु-साध्वियों को दीक्षा दी । जिनशेखर को उपाध्याय पद देकर मुनियों के साथ रुद्रपल्ली भेजा। जयदेवाचार्य, जिनप्रभाचार्य, गुणचन्द्र, विमलचन्द्र, जिनरक्षित, शीलभद्र को अपनी मां के साथ, जयदत्त, रामचन्द्र, जीवानन्द, ब्रह्मचन्द्र, जिनरक्षित, शीलभद्र, वरदत्त, श्रीमती, जिनमती, पूर्णश्री को अध्ययनार्थ धारा नगरी भेजा। अध्ययन कर वापस आने पर श्री जिनदत्तसरिजी ने स्वदीक्षित जीवदेवाचार्य को प्राचार्य पद दिया। जिनचन्द्रगण, वा० शीलभद्रगणि, वा० स्थिरचन्द्र गणि, ब्रह्मचन्द्र गणि, वा० विमलचन्द्र गणि, वा० वरदत्त गणि, वा० भुवनचन्द्र गणि, वरनाग गणि, वा० रामचन्द्र गणि, वा० मणि चन्द्रगणि एव श्रीमती, जिनमति, पूर्णश्री, ज्ञानश्री, जिनश्री पांचों साध्वियों को महत्तरा पद से विभूषित किया। हरिसिंहाचार्य के शिष्य मुनिचन्द्र को उपाध्याय पद, उनके शिष्य वा० जयसिंह को चित्तौड़ में प्राचार्य पद, उसके शिष्य जयचन्द को पाटण में समवशरण में प्राचार्य पद दिया। जोवानन्द को उपाध्याय पद दिया। गुर्वावली में लिखा है कि यदि इनका पूरा विवरण लिखें तो एक बड़ा ग्रन्थ हो जाय ।
मणिधारी जिनचन्द्रसूरि :
___ इनकी दीक्षा श्री जिनदत्तसूरि जी के करकमलों से सं० १२०३ फा० सु० १ को अजमेर में हुई और सं० १२०५ वै० सु० ६ को पट्टधर प्राचार्य बनाया। इन्होंने सं० १२१४ त्रिभुवन गिरि (तहनगढ़) में प्रतिष्ठा व हेमदेवी को प्रवर्तिनी पद देकर सं० १३१७ में फाल्गुन सुदि १० को मथुरा में पूर्णदेव, जिनरथ, वीरभद्र, वीरजय, जगहित, जयशील, जिनभद्रादि सहित जिनपतिसूरि को दीक्षा दी। श्रे० क्षेमंधर को प्रतिबोध दिया। उसी वर्ष वैसाख सु० १० को मरुकोट में चन्द्रप्रभ विधि चैत्य में स्वर्ण कलश-ध्वज दण्डारोहण किया। गोल्लक सेठ तथा क्षेमंधर ने
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