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________________ ३. श्री जिनकृपाचन्द्रसूरि परम्परा की साधु-सूची १. श्रीजिनकृपाचन्द्रसूरि–जन्म १६१३ चातु गांव (जोधपुर)। जन्म नाम-किरपाचन्द ; यति दीक्षा १९२५ चैत्र वदि ३ जिनहंससूरि से । गुरु नाम-कीतिरत्नसूरि संतानीय युक्ति अमृत गणि, बीकानेर । क्रियोद्धार १६३६ । आचार्य पद १६७२ बंबई। स्वर्गवास १६६४ माघ सुदि ११ पालीताणा। आपकी उपस्थिति में ३४ साधुओं का समुदाय था और आपके स्वर्गवास के समय आपका साधु-साध्वी समुदाय ७० के लगभग था । साधनाभाव से सभी के नाम प्राप्त नहीं हैं । जो नाम प्राप्त हैं, वे निम्न हैं १. तिलकभद्र (दीक्षा १९४७), २. जिनजयसागरसूरि, ३. आनन्दमुनि, ४. उपाध्याय सुखसागर, ५. राजसागर (वाचक पद १९७३), ६. विवेकसागर, ७. मंगलसागर (दीक्षा १६७४ माघ सुदि १० सूरत), ८. वर्धनसागर, ६. मतिसागर, १०. कीर्तिसागर, ११. मगनसागर, १२. चतुरसागर, १३. रामसागर, १४. तिलकसागर, १५. हर्षसागर, १६. माणकसागर । त्रिलोक मुनि, पन्नालाल, पालीराम आदि यति हो गए। २. जिनजयसागरसूरि-जन्म १९४३, दीक्षा १६५६, उपाध्याय पद १६७३, आचार्य पद १९६० पालीताणा, स्वर्गवास २००२ बीकानेर। राजसागर आप के भाई थे और हेतश्री आपकी बहिन थी। ३. उपाध्याय सुखसागर--इन्दोर के मराठा थे। प्रवर्तक पद १६७३, उपाध्याय पद १९६२ पालीताणा, स्वर्गवास २०२४ वैशाख सुदि ह पालीताणा । इनके शिष्य थे इतिहासवेत्ता मुनि कान्तिसागर। ___ ४. मुनि कान्तिसागर-जामनगर के थे। दीक्षा १९६२ पालीताणा। स्वर्गवास २८ सितंबर सन् १६६६ जयपुर । १. आज इस परम्परा में एक भी साधु विद्यमान नहीं है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003814
Book TitleKhartar Gaccha Diksha Nandi Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta, Vinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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