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________________ उपाध्याय-वाचनार्य नामानि खलु साधुवत् । व्रतिनीनां तु नामानि यतिवत्पूर्वगैः पदैः ।। ३२ ॥ साध्वी नामान्त पद : स्युरुत्तरपदैरेभिरनन्तरसमीरितः । मतिश्चूला-प्रभा-देवी-लब्धि-सिद्धिवतीमुखैः ।। ३३ ।। प्रवर्तिनीनामप्येवं नामानि परिकीर्तयेत। महत्तराणां तैः पूर्वैः सर्वैः पूर्वपदैरपि ।। ३४ ।। श्रीरुत्तरपदे कार्या नान्यासु व्रतिनीषु च । मुनि नामानि सर्वाणि स्त्रियामादादियोजनात् ॥३५।। जायन्ते वतिनी संज्ञाः श्रान्तः कैश्चिन्महत्तरा। विशेषान्नदि-सेनान्ता: संज्ञास्युजिनकल्पिनाम् ।। ३६ ।। शेषनामानि तुल्यान्युभयोरपि सर्वदा। विप्राणामपि नामानि बुद्धार्ह द्विष्णुवेधसाम् ।। ३७ ॥ गणेश-कात्तिकेयार्कश्चन्द्र शङ्करधीमताम् । विद्याधर-समुद्रादि-कल्पद्रु-जययोगिनाम् ॥ ३८ ।। समानान्युत्तमानां च नामानि परिकल्पयेत् । ब्रह्मचारि-क्षुल्लकयोन नाम्नां परिवर्तनम् ॥ ३९ ॥ (इसके बाद क्षत्रिय वैश्यादि के नामकरण का उल्लेख सर्व गा० ४९ तक है।) सारांश-प्राचीन काल में साधु एवं सूरिपद के समय नाम परिवर्तन नहीं होते थे, पर वर्तमान में गच्छसंयोग वृद्धि के हेतु ऐसा किया जाता है। १. योनि, २. वर्ग, ३. लभ्यालभ्य, ४. गण और ५. राशिभेद को ध्यान में रखते हए शुद्ध नाम देना चाहिए । नाम में पूर्व-पद एवं उत्तर-पद इस प्रकार दो पद होते हैं। उनमें मुनियों के नामों में पूर्वपद निम्नोक्त रक्खे जा सकते हैं १. शुभ, ५. जिन, २. देव, ६. कीर्ति, ३. गुण, ७. रमा (लक्ष्मी ), ४. आगम, ८. चन्द्र, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003814
Book TitleKhartar Gaccha Diksha Nandi Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta, Vinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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