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श्री वैकुण्ठ पंथ
हंसराजा जब उड़ीयो, तब कोइ न करे सार।
सगा कुटुंब सहु एम भणे, वही काढो बार ॥ मार्ग० ४८ ॥ मित्र पुत्रादिक तिहां लगे, तिहां लगे स्नेह भरपूर ।
हंसराजा जब चालिया, तब थया सहु दूर ॥ मार्ग० ४६ ॥ जेवो जणियों तेवो काढियो, नवि मांगी भाग। ____ आगल खोखर हांडली, मांहे अवबलती आग ॥ मार्ग० ५० ॥ पतितपावन प्रभुजी तमे, सुणो हो दीनानाथ ।।
संसार सागर मांही बूड़तां, देजो तुमे हाथ ॥ मार्ग० ५१॥ सांभलो स्वामी शामला, मोरी अरदास। - हुं मांगु प्रभु एटलु, देजो वैकुण्ठ बास ॥ मार्ग० ५२ ॥ अहंकार चित न आणीये, केहने गाल न दीजे। - काम क्रोध लोभ मारिये, तो अमर फल लीजे मार्ग ५३॥ करत कमाइ जोडिये, केहने दोष न दीजे ।
विषनां फल जो वाविये, तो अमृत फल केम लीजे॥मार्ग० ५४॥ छती ऋद्धि खरचे नहि, ते पग मूरख महोटा।
ठालो आव्यो भूलो जायशे, आगल पडशे सोटा |मार्ग० ५५।। चौराशी लख जीव जोनिमां, फिरिया वार अनंत ।
मुनि भीम भणे अरिहंत जपो, जिम पामो भव अंत |मार्ग० ५६॥ संक्त शोल नव्वाणुये, बीज ने बुधवार । ___ आसो मासे गाईया, छीकारी नगरी मझार ॥मार्ग० ५७॥ भीम भणे सहु सांभलो, मत संचो दाम।।
जिमणे हाथे वावरो, तो सहि आवशे काम ॥मार्ग ५८॥ भीम भणे सह सांभलो, नवि कीजे पाप। ओछो अधिको जे मैं कह्यो, ते तमे करजो माफ मार्ग० ५६॥
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