________________
(१०६)
किन्तु सकारात्मक करना क्या चाहिये जिससे संसार का शीव्रता से अंत आ जाए, वह यथार्थ आत्म श्रद्धा के साथ सहजात्म स्वभावसमता भाव में स्थिर रहने रूप चितवृति की निर्विकल्प समाविस्थ, अवस्था ही है। अपने चितवृति का हमेशा के लिये सहज शुद्धत्मा में समा जाना समाधिस्थ हो जाना केवलज्ञान हैं, आयु आदि समी कर्मो से छूटने रूप अवस्था मोक्ष हैं, परम शान्ति है, परमात्मा की परमानन्द अवस्था है, जो शाश्वत हैं। ॐ शांति, शान्ति।
नम्र निवेदक मुमुक्षु केशरी
रामो
रामो अरिहंताप
-
m
गमी आयरियारा
सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रारिण मोक्षमा
-
(णमो उवज्मायारणं
मोलोमay
व साहू,
ॐकार बिन्दु संयुक्त नित्यं ध्यायन्ति योगिनः कामदं मोक्षदं चैव ॐकाराय नमो नमः
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org