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________________ 'समाधि विचार सुर आयु पुरण करो, तिहाँ थो चवीने तेह ।। मनुष्य गति उत्तम कुल, जनम लहे भवी तेह ॥ ३७३ ॥ राज्य ऋद्धि सुख भोगवी, सदगुरु पासे तेह । संजम धर्म अंगोकरी,गुरु सेवे धरी नेह ॥ ३७४ ॥ शुद्ध चरण परिणाम थी, अति विशुद्धता थाय । क्षपक श्रेणी आरोहीने, धाती करम खपाय ॥ ३७५ ॥ केवलज्ञान प्रगट भयो केवल दरशन भास । । एक समय त्रण कालकी, सब वस्तु प्रकाश॥ ३७६ ॥ सादि अनंत थिति करी, अविचल सुख निरधार । वचन अगोचर एह छे, किणविध लहीये पार ॥ ३७७ ॥ महिमा मरण समाधिनो, जाणो अति गुणगेह । तिण कारण भवी प्राणिया, उद्यम करीये तेह ॥ ॥३७॥ एणीविध मरण समाधि को, संक्षेपे सुविचार । दुहा भास रचना करी, निज परने उपगार ।। ३७६ ।। मरण - समाधि विचारनी, प्रति मली मुज एक। तिण में समाधि मरण को वर्णव कियो अति छेक॥३८०॥ पण भाषा मरुदेश की, तिणमें लखीयो तेह । तिण कारण सुगम करी, दुहा बंध कियो एह ।। ३८१ ।। अल्पमति अनुसारथी, बिन उपयोगे जेह। विरुद्ध भाव लखियो जिके, मिथ्यादुष्कृत तेह ।। ३८२ ॥ ॥ इति समाधि विचार ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003812
Book TitleAtma Bodh Sara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavindrasagar
PublisherKavindrasagar
Publication Year1975
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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