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गणधर गौतम : परिशीलन
वैश्रमण देव की शंका-निर्मूल हो गई और वह बोध पाकर श्रद्धाशील बन गया। तापसों की दीक्षा : केवलज्ञान
प्रातःकाल जब गौतम स्वामी पर्वत से नीचे उतरे तो सभी तापसों ने उनका रास्ता रोक कर कहा-"पूज्यवर ! आप हमारे गुरु हैं और हम सभी आपके शिष्य हैं।"
___ गौतम बोले-तुम्हारे और हमारे सब के गुरु तो तीर्थंकर महावीर हैं।
यह सुनकर वे सभी प्राश्चर्य से बोले- क्या आप जैसे सामर्थ्यवान के भी गुरु हैं ?
गौतम ने कहा-हाँ, सुरासुरों एवं मानवों के पूजनीय, राग-द्वेषरहित सर्वज्ञ महावीर स्वामी जगद्गुरु हैं, वे ही मेरे
तापसगण-भगवन् ! हमें तो इसी स्थान पर और अभी ही सर्वज्ञ-शासन की प्रव्रज्या प्रदान करने की कृपा करावे ।
गौतम स्वामी ने अनुग्रह पूर्वक कौडिन्य, दिन्न और शैवाल को पन्द्रह सौ तापसों के साथ दीक्षा दी और यूथाधिपति के समान सब को साथ लेकर भगवान की सेवा में पहुँचने के लिये चल पड़े। मार्ग में भोजन का समय देखकर गौतम स्वामी ने सभी तापसों से पूछा-तपस्वोजनों ! आज आप सब लोग किस आहार से तप का पारणा करना चाहते हैं ? बतलाओ।
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