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________________ गणधर गौतम : परिशीलन वे तपस्वी शंका-कुशंका के घेरे में पड़े हुए सोच ही रहे थे कि इतने में ही गुरु गौतम करोलिया के जाल के समान चारों तरफ फैली हुई आत्मिक-बल रूपी सूर्य किरणों का आधार लेकर जंघाचारण लब्धि से वेग के साथ क्षण मात्र में अष्टापद पर्वत की अन्तिम मेखला पर पहुँच गए। तापसों के देखते-देखते ही अदृश्य हो गए। ___ यह दृश्य देखकर तापसगण प्राश्चर्य चकित होकर विचारने लगे- "हमारी इतनी विकट तपस्या और परिश्रम भी सफल नहीं हुआ, जबकि यह महापुरुष तो खेल-खेल में ही ऊपर पहुँच गया। निश्चय ही इस महर्षि महायोगी के पास कोई महाशक्ति अवश्य होनी चाहिए।" उन्होंने निश्चय किया "ज्यों ही ये महर्षि नीचे उतरेंगे हम उनके शिष्य बन जायेंगे। इनकी शरण अंगीकार करने से हमारी मोक्ष की आकांक्षा अवश्य ही सफलीभूत होगी।" इधर, गौतम स्वामी ने “मन के मनोरथ फलें हो" ऐसे उल्लास से अष्टापद पर्वत पर चक्रवर्ती भरत द्वारा निर्मापित एवं तोरणों से सुशोभित तथा इन्द्रादि देवताओं से पूजित-अर्चित नयनाभिराम चतुर्मुखी प्रासाद मन्दिर में प्रवेश किया। निजनिज काय/देहमान के अनुसार चारों दिशाओं में ४,८,१०,२ की संख्या में विराजमान चौबीस तीर्थंकरों के रत्नमय बिम्बों को देखकर उनकी रोम-राजी विकसित हो गई और हर्षोत्फुल नयनों से दर्शन किये। श्रद्धा-भक्ति पूर्वक वन्दन-नमन, भावार्चन किया। मधुर एवं गम्भीर स्वरों में तीर्थकरों की स्तवना की। दर्शन-वन्दन के पश्चात् सन्ध्या हो जाने के कारण तीर्थ-मन्दिर के निकट ही एक सघन वृक्ष के नीचे शिला पर ध्यानस्थ होकर धर्म-जागरण करने लगे । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003811
Book TitleGautam Ras Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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