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________________ गौतम रास : परिशीलन पिठर) को प्रतिबोधित कर दीक्षा प्रदान की। पश्चात वे सब प्रभ की सेवा में चल पड़े । मार्ग में चलते-चलते शाल और महाशाल गौतम स्वामी के गुणों का चिन्तन और गागलि तथा उसके माता-पिता शाल एवं महाशाल मुनियों की परोपकारिता का चिन्तन करने लगे । अध्यवसायों की पवित्रता बढ़ने लगी और पांचों निर्ग्रन्थों ने केवलज्ञान प्राप्त कर लिया। सभी भगवान के पास पहँचे । ज्योंही शाल महाशाल और पांचों मुनिगण केवलियों की परिषद् में जाने लगे तो गौतम ने उन सबको रोकते सम्बोधित करते हुए कहा- "पहले त्रिलोकी नाथ भगवान की वन्दना करें।" उसी क्षण भगवान ने कहा-गौतम ! ये सब केवली हो चुके हैं, अतः इनकी आशातना मत करो। शंकाकुल मानस गौतम ने उनसे क्षमायाचना की; किन्तु उनका मन अधीरता वश आकुल-व्याकुल हो उठा और सन्देहों से भर गया। वे सोचने लगे- "मेरे द्वारा दीक्षित अधिकांशतः शिष्य केवलज्ञानी हो चुके हैं, परन्तु मुझे अभी तक केवलज्ञान नहीं हुमा । क्या मैं सिद्ध पद प्राप्त नहीं कर पाऊँगा?'' "मोक्षे भवे च सर्वत्र निःस्पृहो मुनिसत्तमः" मोक्ष और संसार दोनों के प्रति पूर्णरूपेण निःस्पृह/अनासक्त रहने वाले गौतम भी “मैं चरम शरीरी (इसी देह से मोक्ष जाने वाला) हूँ या नहीं" सन्देह-दोला में झूलने लगे। __एक दिन गौतम स्वामी कहीं बाहर/अन्यत्र गये हुये थे, उस समय भगवान महावीर ने अपनी धर्मदेशना में अष्टापद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003811
Book TitleGautam Ras Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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