SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४ गौतम रास : परिशीलन भगवन् ! मैं यह क्या देख रहा हूँ ! जहाँ भयत्रस्त एवं अशरण व्यक्ति आपके चरणों में आकर त्राण एवं शरण पाते हैं वहाँ यह प्रापको देखकर भयभीत होकर भाग खड़ा हुआ । प्रभो ! क्या कारण है ? भगवान ने कहा-गौतम ! यह पूर्वबद्ध प्रीति एवं बैर का खेल है । इस किसान के जीव की तुम्हारे साथ पूर्व प्रीति है, अनुराग है, इसीलिये तुम्हें देखकर इसके मन में अनुराग पैदा हुआ और तुम्हारे उपदेश को सुनकर दीक्षित भी हुआ । मेरे प्रति अभी इसके संस्कारों में बैर-विरोध एवं भय की स्मृतियाँ शेष हैं, इसीलिये वह मुझे देखकर पूर्वजन्मों के बैरस्मरण के कारण भयभीत होकर भाग छूटा है। इस प्रसंग को पुनः स्पष्ट करते हुए भगवान् ने कहानौ भव पूर्व मैं त्रिपृष्ठ था और तुम मेरे सारथि थे । खेडूत का जीव तुंगगिरि की गुफा में सिंह था। मैंने इसे मार दिया था और तुमने उस समय उसे स्नेहपूर्ण शब्दों में आश्वस्त किया था, सान्त्वना दी थी। इसीलिये वह तुम्हारे ऊपर अनुराग रखता है और पूर्व बैर के कारण मेरे ऊपर शत्रुभाव । सिंह के इस शत्रुभाव का मुझे तो इस जन्म में दो बार सामना करना पड़ा । प्रथम तो साधना काल अर्थात् छद्मस्थावस्था के प्रथम वर्ष में गंगा नदो पार करने हेतु मैं एक नौका में बैठा था। उस समय इस सिंह का जीव देवलोक में सूदंष्ट्र नामक नागकुमार देव था । इसने विभंग ज्ञान से मुझे देखा। इसका पूर्व बैर जाग्रत हया और उस नौका को डबाने का अथक प्रयत्न किया। खैर, वह सफल न हो सका और मैं दूसरे किनारे सकुशल पहुँच गया। किन्तु, इसकी वैराग्नि शान्त नहीं हुई। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003811
Book TitleGautam Ras Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy