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________________ ३८ गौतम रास : परिशीलन श्रमणोपासक महाशतक ने अपने अन्तिम समय में पौषधशाला में निवास कर आमरण अनशन धारण कर लिया था। इस स्थिति में उसे अवधिज्ञान भी प्राप्त हो गया था। धर्म जागरण कर रहा था। इसी समय महाशतक को पत्नी शराब के नशे में उन्मत्त होकर पौषधशाला में आई और वासनाभिभूत होकर धर्म जागरणरत महाशतक से छेड़छाड़ करने लगी । महाशतक को क्रोध आ गया और कह बैठे- “मौत को चाहने वाली रेवती! तू सातवें दिन अशान्ति पूर्वक मर कर नरक में जाएगी।" ___ इसी प्रसंग में भगवान् महावीर ने कहा-हे गौतम ! तुम जाओ और महाशतक से कहो- “संलेखना व्रत के साधक को ऐसा कटु सत्य कदापि नहीं कहना चाहिए। अतः कठोर भाषा बोलने का प्रायश्चित्त करे।" गौतम ने भगवान् के कथनानुसार कार्य सम्पन्न किया । यह थी भगवान् के प्रति गौतम की समर्पण भावना। भगवान् महावीर के साथ गौतम के पूर्वभव भगवती सूत्र के चौदहवें शतक के संश्लिष्ट नामक सातवें उद्देशक में वर्णन आता है । भगवान कहते हैं "हे गौतम ! तू मेरे साथ चिर-संश्लिष्ट है । हे गौतम ! तू मेरा चिर-संस्तुत है । तू मेरा चिर-परिचित भी है । हे गौतम ! तू मेरे साथ चिरसेवत या चिर प्रीत है । हे गौतम ! तू चिरकाल से मेरा अनुगामी है । हे गौतम ! तू मेरे साथ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003811
Book TitleGautam Ras Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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