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गौतम रास : परिशीलन
सकती । जैसे वट-वृक्ष की शाखा प्रशाखाओं के विस्तार का पार पाना कठिन है ।
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हे भव्यो ! गौतम स्वामी का रास पढ़ें । इसके पठन से चतुर्विध संघ में अपार आनन्द होगा। संघ के लिये ऋद्धि-वृद्धि और कल्याणकारी सिद्ध होगा ||४६ ॥
कुंकुम चन्दन छड़ो दिवरावउ, माणिक मोतिनउ चउक पुरावउ, रयण सिंहासणि बेसण ए । तिहं बइसि गुरु देसना दइसी, भविक जीवना काज सरेसी, नित नित मंगल उदय करउ ॥४७॥
हे श्राद्धजनो ! गौतम स्वामी के केवलज्ञान दिवस पर आप धर्मस्थल ( उपाश्रय) में कुंकुम चन्दन के हथ छापे लगाओ, माणिक्य और मांतियों के चाके / स्वस्तिक बनाओ और रत्नों का सिंहासन स्थापित करो । उस सिंहासन पर विराजमान होकर सद्गुरु देशना देंगे । वह देशना भव्यजनों के मनाभिलषित कार्य सिद्ध करेगी और वह निरन्तर मंगलकारी तथा अभ्युदयकारी सिद्ध होगी ||४७ ||
पद्यांक ३८ से ४७ तक के पद्य देश्य छन्द के हैं, नाम शोध्य है । ४५ मात्रात्मक द्विपदी मानें तो इसका विराम १६, १६, १३ मात्रात्रों का है ।
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