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________________ गौतम रास : परिशीलन १२७ तुम्हारा वैदुष्य कहाँ चला गया ! क्या तुम नहीं जानते कि प्रभु महावीर तो सच्चे वीतरागी थे । यदि सर्वज्ञ किसी के प्रति स्नेह करे तो वह वीतराग कैसे कहला सकता है ? यही कारण है कि उन्होंने राग को अपने पास फटकने ही नहीं दिया था । ।।३५।। श्रावतउ ए जे उल्लट, रहितउ रागइ साहियउ ए, केवल ए नाण उप्पन्न, गोयम सहिज उमाहियउ ए । तिहुण ए जय-जयकार, केवल महिमा सुर करइ ए, गणधरु ए कर वक्खाण, भवियण भव जिम निस्तरइ ए ॥३६॥ गौतम स्वामी का विचार मंथन गुणस्थानों की प्रोर उन्मुख हुप्रा । वे मोह भंग होते ही राग-रहित होकर क्षपक श्रेणि पर आरूढ हो गए । तत्क्षण ही उन्हें सहजता से केवलज्ञान प्राप्त हो गया । महावीर के निर्वाण से जो अन्धकार छा गया था वह गौतम स्वामी के केवली हो जाने से दूर हो गया, छिटक गया। तीनों लोक के प्राणी उनकी जय-जयकार करने लगे । देवतागण केवलज्ञान की महिमा / उत्सव करने लगे । गौतम गणधर ने केवलज्ञानी बन कर उस प्रकार की देशना देने लगे जिससे कि भविक जन उसे श्रवण कर एवं पालन कर संसार समुद्र से पार उतर जाएँ ।। ३६ ।। 1 ( पढम गणहर) पढम गणहर वरस पच्चास, गिहवासे संवसिय, तीस बरस संजम विभूसिय, केवलनाण सिरि पुण, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003811
Book TitleGautam Ras Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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