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गौतम रास : परिशीलन
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इधर प्रातःकाल होने पर गौतम स्वामी प्रभु के समीप पहुँचने के लिये चल पड़े। मार्ग-चलते हुए उन्होंने देखा-- आकाश मण्डल में विमानों में बैठकर देवगण त्वरा के साथ पावापुरी की ओर भागते हुए निविण्ण शब्दों में कहते जा रहे हैं:-"चलो, शीघ्रता से चलो, भगवान का निर्वाण महोत्सव मनाने जल्दी चलो।"
"महावीर का निर्वाण" शब्द-ध्वनि कानों में पड़ते हो सहसा उन्हें इन शब्दों पर विश्वास ही नहीं हुमा । “देव असत्य नहीं बोलते" स्मरण में आते ही गौतम हतचेता/दिङ्मूढ हो गए । विषाद की सहस्रों धाराओं से उनका गात्र कम्पित होकर शिथिल हो गया । असह्य मामिक व्यथा से चित्त उद्वेलित होकर संकल्प-विकल्प में गोते खाने लगा । वे विलाप करते हुए, उपालम्भ देते हुए कहने लगे ।।३३।।
इणि समे ए सामिय देखि, आप कनासु टालियउ ए, जारणतउ ए तिहुअण नाह, लोक विवहार न पालियउ ए। प्रतिभलु ए कीधलुं सामि, जाण्यु केवल मांगसे ए, चिन्तव्यु ए बालक जेम, प्रहवा केडइ लागसे ए ॥३४॥
प्रभु ने अपना अन्तिम/निर्वाण समय जानकर भी इस समय अपने पास से मुझे प्रतिबोध देने के छल से दूर भेज दिया, स्वामी आपने यह अच्छा नहीं किया।
अन्तिम समय में लोग अपने व्यक्तियों को जो दूर हैं उन्हें भी अपने समीप बुला लेते हैं, यह लोक-व्यवहार है ।
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