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गौतम रास : परिशीलन
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भव से विरक्त होकर स्वामी से दीक्षा ग्रहण कर, शिक्षा प्राप्त कर गणधर पद प्राप्त किया ||२२॥
इसमें कवि ने भद्रा नामक रड्डा-वस्तु छन्द का प्रयोग किया है। यह नौ चरणों का है। प्रारम्भ के पाँच चरणों में १५, १२, १५, १२, १५ मात्राएँ हैं और अन्त के चार चरण दोहा छन्द में निबद्ध हैं।
पद्यांक २३ से ३० तक ८ पद्यो में कवि ने गणधर गौतम की गुरु-भक्ति, जनहित महावीर स्वामी से प्रश्न, "चरम शरीरी हूं या नहीं" के समाधान हेतु अष्टापद तीर्थ की यात्रा, १५०० तापसों को प्रतिबोध आदि का सारगभित वर्णन किया है।
आज हुअउ सुविहारण, आज पचेलिमा पुण्य भरउ, दोठउ गोयम सामि, जउ निय नयण अमिय झरउ। समवसरणहि मझार, जइ-जइ संसा उपजइ ए, तइ-तइ पर उपगार, कारण पूछइ मुनिपवरउ ॥२३॥
उनके लिये वह आज का दिन स्वणिम दिवस है, भाग्योदय का दिवस है, उनके लिये प्राज परिपक्व पुण्य का उदय हुआ है कि जिन्होंने अमृतस्रावी अश्रुसिक्त स्वकीय नेत्रों से गौतम स्वामी को देखा, उनके प्रत्यक्ष दर्शन किये, उनके स्वरूप को अपने नेत्रों में अंकित कर लिया।
मुनिप्रवर गणधर गोतम जनहित के लिये जो भी चित्त में शंकाएँ संशय उत्पन्न होते थे उनके निराकरण के लिये समवसरण में विराजमान सर्वज्ञ प्रभु से प्रश्न पूछ कर विभु से समाधान प्राप्त करते थे ।।२३।।
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