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________________ गौतम रास : परिशीलन ११५ पांच सौ शिष्य/छात्र वृन्द के साथ प्रभु का शिष्यत्व अंगीकार किया । भगवान् महावीर ने सपरिवार इन्द्रभूति को प्रवजित कर अपना प्रथम शिष्य घोषित किया । अपने अग्रज भ्राता इन्द्रभूति के संयम ग्रहण और सर्वज्ञ के शिष्य बनने के संवाद जब अग्निभूति मनीषी को ज्ञात हुए तो अग्निभूति भी सर्वज्ञ को शास्त्रार्थ में पराजित कर अपने बड़े भाई को उस (ऐन्द्रजालिक) के जाल से मुक्त कराने के अभिप्राय से अपने ५०० छात्रों के साथ समवसरण की ओर चला । सर्वज्ञ महावीर ने इन्द्रभूति के समान ही “भो अग्निभूति ! प्रायो' सम्बोधित कर, उसके हृदि स्थित कर्मविषयक शंका का समाधान कर प्रतिबोधित किया। प्रतिबोध प्राप्त कर अग्निभति ने भी ५०० छात्रों के साथ संयम ग्रहण कर प्रभ का शिष्यत्व अंगीकार कर लिया ।।२०।। इणि अनुक्रम गणहर रयण, थाप्या वीर इग्यार तउ, तउ उपदेसइ भवन गुरु, संयम सं व्रत धारतउ । बिहुं उपवासइ पारQ ए, पापणपइ विहरंत तउ, गोयम संयम जगि सयल, जय जयकार करत तउ ॥२१॥ ___ पावापुरी यज्ञशाला में देश के विख्यात याज्ञिक विद्वान् सम्मिलित हुए थे । उक्त सभी याज्ञिक इन्द्रभूति और अग्निभूति की तरह सर्वज्ञ को पराजित कर अपना शिष्य बनाने की कामना से क्रमश:-वायुभूति, आर्य व्यक्त, सुधर्म, मण्डित, मौर्यपुत्र, अकम्पित, अचलभ्राता, मेतार्य, प्रभास-समवसरण में गये और अपनी-अपनी शंकाओं का महावीर के श्रीमुख से वेद ऋचाओं के माध्यम से समाधान पाकर, स्वकीय विपुल शिष्य परिवारों Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003811
Book TitleGautam Ras Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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