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लेखक के दो शब्द गत वर्ष मैं छत्तीसगढ़ रत्न शिरोमणि साध्वीवर्या श्री मनोहरश्रीजी महाराज के दर्शनार्थ नागोर गया था। उस समय वार्तालाप के मध्य उन्होंने सानुरोध कहा -“विनयप्रभोपाध्याय रचित गौतम रास जनमन का हार है, किन्तु, इसका हिन्दी भाषा में प्रामाणिक अनुवाद न होने से श्रद्धालु जनमानस इसके रहस्य को हृदयंगम नहीं कर पा रहा है । रास को भाषा को आप समझते हैं। अतः आप इसका अनुवाद अवश्य कर डालिये।"
मैंने उनका अनुरोध सहर्ष स्वीकार किया और प्रवास से लौटने पर छ ही दिनों में "गौतम रास' का हिन्दी अनुवाद कर डाला और साहित्य-महारथी श्री भंवरलालजा नाहटा से संशोधन भी करवा लिया ।
गौतम रास की प्रस्तावना लिखते समय यह विचार उभरा "कि गौतम स्वामी के जोवन-चरित्र के सम्बन्ध में जैनागमों और जैन कथा-साहित्य में यत्र-तत्र जो भी उल्लेख या सामग्री प्राप्त है, उसका संकलन क्यों न कर लिया जाय ।" इन्हीं विचारों ने मूर्त स्वरूप लिया और इसी के फल-स्वरूप 'गौतम स्वामी : परिशीलन' लिखा गया।
लेखन करते समय मन में यह जिज्ञासा थी कि “गौतम स्वामी की अष्टापद तीर्थ-यात्रा का प्राचीन स्रोत क्या है ?" अध्ययन करते हुए प्राचीन प्रमाण भी मिल गया; जिससे मनःतोष भी हो गया। प्राचोन प्रमाण है :
सर्वमान्य प्राप्त व्याख्याकार जैनागम-साहित्य के मूर्धन्य विद्वान् या किनोमहत्तरासूनु प्राचार्य हरिभद्रसूरि “भवविरह"
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