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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
॥ ढाल ॥ ततखिण तिहां मिलिया चलियासण सुर कोडि । प्रभुना पद पंकज प्रणमइ बेकर जोडि ॥ बेकर जोड़ी मछर छोडी समवसरण विरचंति । माणिक हेम रूप मय त्रिगढ छत्र त्रय झलकति ॥ सिंहासन बइठा तिहां सामी चउविह धरम प्रकासइ। बार परपदा आगलि बइठी निसुणइ मन ऊलासइ ॥१०॥ तप नइ अधिकारइ पखवासउ तप सार । पडिया थी लोजइ पनरह तिथि सुविचार ॥ पनरह तिथि कीजइ गुरु मुखि लीजई जिण दिन हुइ उपवास । श्री मुनिसुव्रत नाम जपीजइ, वांदी देव उल्लास ॥ तप ऊजमणइ रजत पालणउ सोवन पूतलि चंग। मोदक थाल देहरइ ढोइ जिनवर स्नात्र सुचंग ॥११॥ तप कीजइ रे निरंतर अदुख दर्शनी जेम । मन वंछित सुख संपति पामीजइ तेम ॥ संपति पामीजइ लील करोजइ राज रिद्धि विस्तार । पुत्र मित्र परिवार परंपर अति वल्लभ भरतार ।। जस कीरति सोभाग वढइ महियल महिमा जाण । पर भवि मुगति तणा फल लहियइ ए तप तणइ प्रमाण ॥१२॥ थिर थापी रे चतुर्विध संघ तणउ अधिकारि । . भरुयच्छि प्रमुख नगरादिक करिय विहार ॥
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