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पौषध-विधि गीतम्
( ५
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तिणि रातई पोसउ कीयौरे, वीर वांदण चित लायरे ।२५ध.। तुंगिया नगरी तणा रे, श्रावक सुध अनेक । जिण विधि तिणि पोसउ कीयौ रे, ते विधि करउ सुविवेक रे।२६ध.। लेप श्रावक पोसउ लीयौ रे, आणंद नई कामदेव । वलि दृिष्टांत सुबाहुनउ रे, मनि धरिजो नितमेव रे ।२७धः। ढाल पांचमी-(जग जीवन वीरजी कुवण तुम्हारइ सीस, एहनी ढाल) पाछिली रांतइ उठई नइ हो, श्रावक हुयई सावधान । राइ पायछत काउसग करी हो, देव वांदइ सुभ ध्यान ।२८ संवेगी श्रावक पोसउ नी विधि एह । मिलती सूत्र सिद्धांत सुं हो, मति करउ करिज्यो संदेह ।२६।सं.। उंचइ सरि बोलइ नहीं हो, दोष कह्या भगवंत । वलि सामाइक ल्यइ नवउ हो, पडिकमणउ करइ तंत ।३०।सं.। पडिलेहण किरिया करइ हो, सगली पूरव रीति । सहु सज्झाय कियां पछी हो, खिण पडखइ दृढ चीति ।३१।सं.। पहिलउ पोसौ पारिनइं हो, सामाइक पारेइ । पडिलाभइ अणगारनइ हो, अतिथि संभाग करेइ ।३२।सं. विधि सेती पोसउ कीयउ हो, बहु फलदायक होइ । अविधि संघाति कीजतां हो, काज सरह नही कोइ ।३३।सं.। पणि विधिनी खप कीजता हो, अविधि हुवई जिकाय। मिच्छा दुक्कड दीजतां हो, छुटक बारउ थाय ।३४।सं.।
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