________________
( ५८६)
समयसुन्दरकृतिकुसमाञ्जलि
जनम मरण ना दुख थकी, मई छोडाव्या अनेक । नाम कहुं हिव तेहना, सांभलिज्यो सविवेक ॥७॥
... ढाल-पास जिणंद जुहारीयइ एहनी सील कहइ जगि हुँ बडउ, मुझ बात सुगाउ अति मीठी रे। लालच लावइ लोक नइ, मइ दाण तणी बात दीठी रे।१ सी०। कलिकारक नगि जाणियइ, वलि विरति नही पणि काइरे। ते नारद मइ सीझव्यउ, मुझ जोवउ ए अधिकाइ रे ।१ सी बांहे पहिर्या बहिरखा, संख राजा दूषण दीधा रे। काप्या हाथ कलावती, पणि मइ नवपल्लव कीधा रे ।३ सी०। रावणि घरि सीता रही, तउ रामचंद्र का आणी रे। सीता कलंक उतारीयउ, मइ पावक कीधुं पाणी रे।४ सी। चंपा बार उघाडीयां, वलि चालणि काढ्य नीरो रे।। सती सुभद्रा जस थयउ, ते मई तस कीधी भीरो रे ।५ सी०। राजा मारण मांडीयउ, राणी अभया दूषण दाख्यउ रे। सूली सिंहासन थयुं, मइ सेठ सुदरसण राख्यउ रे ।६ सी०। सील सनाह मंत्रीसरई, आवंता अरिदल थंभ्या रे। तिहां पणि सानिध मई कीधी, वलि धरम कारज प्रारंभ्यारे।७ सी०। पहिरण चीर प्रगट कीआ, मइ अट्ठोतर-सइ वारो रे। पांडव हारी द्रपदी, मई राखी माम उदारो रे।८ सी०। ब्राह्मी चंदनवालका, वलि सीलवंती दवदंती । चेडा नी साते सुता, राजोमतो सुन्दरि कुन्ती रे ।। सी।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org