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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
गणा देव तणइ उपदेस, इंद्रइ वलि दीघउ आदेस । आदिनाथ तणउ देहरउ, भरत करायउ गिरि सेहरउ ॥१५ सोना नउ प्रासाद उत्तङ्ग, रतन तणी प्रतिमा मन रंग । भरतइ श्री आदीसर तणी, प्रतिमा थापी सोहामणी ॥१६॥ मरुदेवी नी प्रतिमा वली, माही पुनिम थापी रली। ब्राह्मी सुंदरि प्रमुख प्रासाद, भरतइ थाप्या नवल निनाद ॥१७॥ इम अनेक प्रतिमा प्रासाद, भरत कराया गुरु सुप्रसाद । भरत तणउ पहलउ उद्धार, सगलउ ही जाणइ संसार ॥१८॥
सर्वगाथा ४७ दाल चौथी-राग आसाउरी-सिंधुडउ ।
(जीवड़ा जिन ध्रम कीजयइ, एइनी ढाल ) भरत तणइ पाटि आठमइ, दंडवीरज थयउ रायो जी। भरत तणी परि संघ कियउ, सेज संघवी कहायो जी।१। सेवज उद्धार सांभलउ, सोल मोटा श्रीकारो जी। असंख्यात बीजा बली, तेनहिीं कहूँ अधिकारो जी।। से.। चैत्य करायउ रूपा तणउ, सोना नउ बिंब सारो जी। मूलगउ बिंब भंडारियउ, पछिम दिस तिण वारो जी।३।से.। सेज नी यात्री करी, सफल कीयउ अवतारो जी। दंडवीरज राजा तणड, ए बीजउ उद्धारो जी।४।से. । सउ सागरोपम व्यतिक्रम्या, दंडवीरज थी जिवारो जी। ईसानेंद्र करावियउ, ए त्रीजउ उद्धारो जीशसे.।
* नवलइ नाद हिना
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