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________________ शत्रु जय रास ( ५७३ ) पंचास जोयण पहिलपणि, चउथइ अरइ मझारि । उंचउ दस जोयण अचल, नित प्रणमइ नरनारि ॥४॥ बार जोयण पंचम अरइ, मूल तणउ विस्तार । दो जोयण उंचउ अछइ, सेत्रञ्ज तीरथ सार ॥॥ सात हाथ द्यइ अरइ, पहिलउ परवत एह । उचउ होस्यइ सउ धनुष, सासतउ तीरथ तेह ॥६॥ सर्वगाथा १७ दाल बीजी-जिग्णवर सँ मेरो मन लीणउ, राग आसावरी केवलज्ञानी प्रमुख तिर्थकर, अनंत सीधा इण ठाम रे । अनंत वली सीझस्यइ इण ठामइ, तिण करूं नित्य परणाम रे।१। सेत्र ञ्ज साध अनंता सीधा, सीझस्यइ बलिय अनंत रे। जिण सेव॒ञ्ज तीरथ नहि भेट्यउ, ते प्रभवास कहंत रे । २ । से.। फागुण सुदि आठमिनइ दिवसइ, ऋषभदेव सुखकार रे।। राइणि रूखि समोसरया सामी, पूरव निवाण वार रे । ३।से। भरतपुत्र चैत्री पुनिम दिन, इण सेत्र ञ्ज गिर आई रे। पांच कोडि स पंडरीक सीधा, तिण कहाइ रे।४।से। नमि विनमी राजा विद्याधर, विवि कोडि संगाति रे । फागुण सुदि दसमी दिन सीधा, तिण प्रणम परभाति रे। ५१ से.। चेत्रमास वदि चवदस नइ दिन, नमि पुत्र चउसट्टि रे। अणसण करि सेत्रुञ्जगिरि ऊपरि, ए सहु सीधा एकढिरे। ६।से.। . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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