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शत्रुञ्जय रास
श्री शत्रुंजय तीर्थ रास
श्री रिसहेसर पय नमी, आणी मनि आणंद | रास मणु रलियामउ, सत्रु नउ सुखकंद || १ || संवत च्यार सत्योतरइ, हुयउ धनेसरसूरि । तिण सेज महातम कीयउ, सिलादित्त हजूरि ॥२॥ वीर जिगिंद समोसर्या, सेत्रुज उपरि जेम । इंद्रादिक आग काउ, सेज महानम एम ||३| सेज तीरथ सारखउ, नहीं छह तीरथ कोय । सर्ग * मृत्य पाताल मह, तीरथ सगला जोय ॥४॥ नामइ नवनिध संपजइ, दीठां दुरित पलाय | भेटता भवभय टलई, सेवतां सुख थाइ ||५|| जंबू नामह दीप ए, दक्षिण भरत मकार ! सोरठ देस सोहामणउ, तिहां छड़ तीरथ सार ||६||
१८वीं शती के भक्तिविशाल के ओसियां में लिखित प्रति में प्रारम्भ में निनोक्त दो श्लोक अधिक हैं
( ५७१ )
श्री शत्रुञ्जय तीर्थस्य संति रासा श्रनेकशः । प्रवर्त्तमानास्सर्वत्र नाना कवि विनिर्मिताः ॥ १ ॥ परं मया स्वजिह्वायाः पवित्र करणार्थिना । ग्रन्थानुसारतश्चक्रे रासः स्त्रपरहेतवे ॥२॥ युग्मम् कृतं श्री समय सुन्दरैः ।
* स्वर्ग मृत्यु
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