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तुल्लक ऋषि रास
( ५६५)
मल भला करइ राव भेटणा, चंदन चोवा अबीरो जी। माणिक मोती मंगिया, चोली चरणा चीरो जी॥ चोली मइ चरणा चीर सखरा, सुखड़ा सुसव द ए । रली रंग स्यु लइ जसोभद्रा, जाणइ जेठ प्रसाद ए॥ उपाय मांड्यउ राय एहवा, मन धीरिज ना मेटणा। पुण्डरीक कामातुर थयउ घणु, भल भला करइ भेटणा ॥ ४॥.. एक दिन एकान्ते आव ए, प्रारथना करइ राजो जी । भोग भोगवि भला मुझ सु, मन सेती मन लायो जी॥ मन सेती मन लाय मुझस, मकरिस ताणा ताण ए। ताहरउ जोवन जाइ लहरे, तु छइ चतुर सुजाण ऐ॥ एहवइ धीरिज रहइ ते धन, परलोक सुख पाव ए। पणि करम नइ वसि पड्यउ प्राणी,एक दिन एकांत आवए॥५॥ एह सराग वचन सुणी, मुहड़इ आंगुली देयो जी। भउजाई कहइ मत भणइ, लोक मई लाज मरेयो जी ॥ लोक मई लाज मरेय बांधव, थकी इम किम बोलियइ । धीरिज धरंता धरम थायइ, धरम थी नवि डोलियइ ॥ उपाय मांड्यउ अधम राजा, भाई नउ मारण भणी। कामान्ध माणस किसुन करइ, ए सराग वचन सुणी ॥६॥ भाई मारि मँडउ कियउ, हुयउ हाहाकारो जी। शील राखण नारी सती, शील वडउ संसारो जी ॥ शोल वड़उ जाणी जसोभद्रा, साथ मई भेली थई । हा दैव ! स्यु थयु दुःख करती, सावथी नगरी गई ।
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