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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
क्षुल्लक ऋषि राप्त राग--गउड़ी । इकदिन महाजन आवए अथवा श्री नवकार मनि
ध्याइयइ, ए गीता छन्द नो ढाल पारसनाथ प्रणमी करी, जालोर ज्योति प्रकाशो जी। भाव भगति सुहुँ भण, ऋषि क्षुल्लक नउ रासो जी॥ ऋषि क्षुल्लक नउ रास हुँ भएँ, गिरुयानांगुण गावर्ता । आपणी जीभ पवित्र थायइ, श्रावक नई संभलावतां ।। ए भरत क्षेत्र मई अति मनोहर, अयोध्या नामइ पुरी। . तिहां लोक ऋद्धि समृद्धि सहु को, पारसनाथ प्रणमी करी॥१॥ राज करइ तिहां राजियउ, पुण्डरीक नाम नरिंदो जी। गुणसुन्दरी तसु भारिजा, पामइ परमाणंदो जी ॥ पामइ परमाणंद तेहनइ, कंडरीक भाई भलउ । भारिजा तेहनइ जसोभद्रा, रूप शील कला निलउ । एक दिवस सुन्दर रूप देखी, राजा चित्त विचारियउ । भोगवं जिम तिम करी भउजाई, राज करइ तिहां राजियउ॥२॥ कामातुर न करइ किसु, क्रोधी किसुन करेउ जी। लोभी पिण न करइ किसुं, आप मरइ मारेवउ जी ।। आपण मरइ न मारेउ कांइ, अकारिज कारिज किसं । करतो न जाणइ पड्यउ परवसि,मद पीधइ माणस जिसुं॥ पापियउ प्राणी इम न जाणइ, नरग ना दुख देखिस। इह लोक माहे हुस्यइ अपजस, कामातुर न करइ किसु॥३॥
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