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( ५६० ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि तउ हुँ बांधू मारू तेहनइ, ते कहे मूकि लगारो जी। कुटंब नइ कहि आवुहुँएहवं, मत करउ एह प्रकारो जी। ६ के.। तउ तुमूकइ ना मृकुं नहीं, तिण परि नारकी जीवो जी। परमाहम्मी खिण मूकइ नहीं, तिहां पड्यउते करइ रीवो जी । ७ के.। वलि प्रदेशी कहइ दादी हुँती, करती तुमारउ धर्मो जी।। तुम्हारे वचने ते थई देवता, सुखी हुस्यइ शुभ कर्मो जी।८ प्र.। हुँपणि दादी नइ वल्लभ हुँतउ, तिण पणि न कह्यउ मुझो जी। जीवदया पाले जिन धर्म करे, सुख संपति छइ तुज्झो जी।६ प्र.। सुणी नृप स्नान करि तुं नीसर्यउ,देहरा भणी सुपवित्तो जी। विष्ठा घर मांहि बइठउ आदमी, तेडइ तु आवि तुरंतो जी।१० के.। तिहां तु जायइ कहइ जाउं नहीं, तउ ते आवइ केमो जी। काम भोग लपटाणा ते रहइ, इहां दुर्गन्ध छइ एमो जी ।११ के.। कोटवाल चोर झाली आणी दियउ, मइंते परीक्षा निमित्तो जो। लोह कुंभी मांहि घाली काठउ,जड्यउब्यंघउ वार विछित्तो जी।१२। वलि कुंभी उघाड़ी एकदा, मूयउ दीठउ तिवारउ जी। कहउ ते जीव हुंतउ तउ किहां गयउ,छिद्र नदीसइ लगारउ जी।१३। कूड़ागार शाला जिहां छिद्र नहीं,ते मांहिं बइठउ कोयो जी। जउ ते भेरि बजाइ जोर सं, शब्द सुणइ तुं सोयउ जी ।१४ के.। कहि ते शब्द किहां थी नीसर्यउ, छिद्र पड्यउ नहीं कोयउ जी। तिम ए जीव सरूप तुजाणिज्ये, अप्रतिहत गति होयोजी।१५ के.। चोर कभी मांहि घाल्यउ मारिनइ, वलि एकदा ते दीठउ जी। जीवाकुल दीठी देही तिहां, छिद्र विण किम ते पइठउ जी १६ प्र.। लोह नउं गोलउ धमणी माहइ, धम्यउ लाल थयउ तत्कालउ जी।
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