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( ५५८ )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
छठम अहम प्राकरा तप कीधा, ऋषि पुजे वलि जेह रे। तेह तणी कहुँ बात केती, कहतां नावै छेह रे ॥३०॥ अठावीस वरस लगि तप कीधा,ते सघला कह्या एम रे। आगलि वलि करिस्यै ऋषि पुंजो, ते आणिस्यइ तेम रे॥३१॥
ढाल
पुंजराज मुनिवर बंदो, मन भाव मुनीसर सोहै रे। उग्र करइ तप आकरौ, भवियण जन मन मोहइ रे ॥३२॥ धन कुल कलंवी जाणीयइ, बाप गोरो ते पिण धन्न रे । धन धना बाइ कुखड़ी तिहां, उपनो एह रतन रे ॥३३॥ धन विमलचंद सूरि जिणे, दीख्या दीधी निज हाथ रे। धन श्री जयचंद्र गच्छ घणी, जसु साहु रहै ए पास रे॥३४॥
आज तो तपसीएहवो, पुजा ऋष सरीखो न दीसइरे। तेहन वंदता विहरावतां, हरखै करि हियडौ हींसइ रे ॥३॥ एक बे वैरागी एहवा, श्री पासचंद गच्छ मांहिं सदाई रे। गरुड़ बाढइ गच्छ मांहि, श्री पासचंदसूरि नी पुण्याइरे॥३६॥ संवत सोल अठाणुअइ, श्रावण पंचमी अजुवालइ रे । रास भण्यो रलियामणो, श्री समयसन्दर गुण गाइ रे ॥३७॥
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