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आलोयणा छत्तीसी
(५४५)
बोलइ नहीं ते बापड़उ, पिण पीड़ा होय । तेहवी तीर्थकर कहइ, आचारांग जोय ॥पा.॥१०॥ आदौ मूलौ आदि दे, कंद मूल विचित्र । अनंत जीव सूई अग्र में, पन्नवणा सूत्र ॥ पा.॥११॥ जीम नइ स्वाद मारघाजिके, ते मारस्यई तुज्झ । भव मांहे भमता थकां, थास्यै जिहां तिहां जुज्झ ॥ पा.॥१२॥ झूठ बोल्या घणा जीभड़ी, दीधा कूड़ कलंक । गल जीभी थास्यै गलै, हुस्यइ मुहड़ो त्रिबंक ॥ पा.॥१३॥ परधन चोत्या लूटिया, पाड्यउ ध्रसकउ पेट । भूख्यो भमि संसार मां, निर्धन थकउ नेट ॥ पा.॥१४॥ परस्त्री नइ भोगवी, तुच्छ स्वाद तूं लेसि । पिण नरके ताती पूतली, आलिंगन देसि ॥ पा.॥१०॥ परिग्रह मेल्यो कारमो, इच्छा जिम अाकास । काज सरयो नहीं ते थकी, उत्तराध्ययन प्रकाश ॥ पा.॥१६॥ पाणी घट्टी उंखले, जीव जे पीड़ेसि । खामिस तूं नहिंतरि नरक मई,घाणी मांहि पीलेसि ।। पा.॥१७॥ छाना प्रकारिज करि पछइ, गर्भ नांख्या पांडि । परमाधामी ते तुज्म ने, नित नांखिस्यै फाडि ।। पा.॥१८॥ गोधा ना नाक बींधीया, खासी कोधा बनध । प्रारंभी उठाडिया, राते ऊँचे सबद ॥५.॥१६॥ बाला बढान्या टांकता, मांकण खाटला कूटि । विरेच लेइ कमि पाड़िया, गलणी गयउ टि ।। पा.॥२०॥
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